05/09/2024
🙏 Radha Soami Ji 🙏
*2 जुलाई को बाबा जी ने बगैर पाठी के सत्संग किया,हुजूर ने बड़े ही कठोर शब्दों और चेतावनी से फ़रमाया कि अगर शिष्य के रूहानी सफर में सतगुरू का देह स्वरूप रुकावट बन रहा है तो फिर अब समय आ गया है कि सतगुरू को अपने देह स्वरूप को लुप्त कर देना चाहिए, हटा लेना चाहिए। आपने अंत में यहां तक कह दिया कि यह जो बेनती की गई है... यह डराने के लिए नहीं की गई है....! यह सच भी हो सकती है। आपने सब संगत को यह बिल्कुल साफ़ संदेश दिया कि अगर मेरी देह स्वरूप के बाहरी दर्शन, और बाहरी सत्संग को एक रस्म रिवाज़ बनाकर अपना जीवन बाहरी सेवा तक ही रखोगे तो मुक्ति नहीं मिलेगी। जो केवल और केवल अंतरमुख नाम की कमाई से ही सम्भव है। “नानक के घर केवल नाम” अगर हमें अपने सतगुरू से सचमुच प्यार है तो उनके इतने दुःख भरे वचनों को सुनकर हृदय में चोट लगनी चाहिए। और रोज़ाना बिना नागा भजन सिमरन को पूरा वक्त देना चाहिए।।*
☝️नानक के घर केवल नाम🙏
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_*सतगुरु जी का हुकुम हमारे सिर मत्थे*_☝🏾
_हमने 1 जून 1990 को *सतगुरु हुजूर महाराज जी चरणसिंह जी* का देह रूप में बिछोड़ा सहा। मन, शरीर ही नहीं आत्मा भी व्यथित हुई। समय का चक्र चलता गया। हम डेरा ब्यास गए। हमें *""बाबाजी""* के पहली बार दर्शन का सौभाग्य लंगर सेवा में सतगुरु ने बख्शा।_
_लंगर सेवा के बाद हम सत्संग पंडाल में सत्संग सुनने व_ _*""बाबाजी""* के दर्शन की अभिलाषा लेकर बैठे। सत्संग आरंभ हुआ *""बाबाजी""* शान्तचित्त गद्दी पर विराजमान थे। सत्संगकर्ता सत्संग फरमा रहे थे। टीवी स्क्रीन पर_ _*""बाबाजी""* को निहारते हुए हृदय *""हुजूर महाराज जी""* की याद से व्यथित हुआ और आंखों से आंसू गिरने लगे। अपने आपको संभालते हुए जब टीवी स्क्रीन पर *""बाबाजी""* को देखा तो गद्दी पर हमें *""हुजूर महाराज जी""* के दर्शन हुए।_
_हम हैरान, आंखें मली पुनः देखा, बार बार देखा तो कभी गद्दी पर *""हुजूर महाराज जी""* विराजमान और कभी *""बाबाजी""*। यह सब करके *""हुज़ूर महाराज जी""* ने हमें समझा दिया कि *""बाबाजी""* और *""हुजूर महाराज जी""* एक ही हैं।_
_आज फिर समय का चक्र उसी परिस्थिति पर आ गया है। अन्तर इतना है कि आज हमारे प्रिय *""बाबाजी""* ने अपना उत्तराधिकारी *""जसदीप सिंह गिल जी""* को बना दिया है, लेकिन वह स्वयं भी हमारे पास हैं। हृदय तो आज भी व्यथित है, पर हृदय यह भी सोच रहा है कि *""बाबाजी""* भी देह रुप में हमारे पास हैं।_
_असंख्यों जिज्ञासु भावुक हैं, हमारी भांति व्यथित हैं। हमने 1 जून 1990 के बाद का डेरे का अपना अनुभव इसलिए प्रस्तुत किया है कि प्यार करनी में जाहिर होना चाहिए। करनी का अर्थ है सिमरन भजन। हमें इस विरह और प्यार की अवस्था को सिमरन भजन में लीन कर देना है। इससे *""बाबाजी""* भी खुश होंगे और अपनी अपार दया मेहर से संभव है कि हमें और आपको यह अनुभव करवा दें कि_ _*""बाबाजी""* और कल गद्दीनशीन होने वाले_ _*""सतगुरु""* एक ही हैं। अन्त में यही की *""सतगुरु जी का हुकूम सिर मत्थे""*।_
_*""बाबाजी""* जो कर रहे हैं अच्छा ही कर रहे हैं।_
_*राधास्वामी जी🙏*_
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[Guru payri sadh sangat ji Radha swami ji 🙏🙏
RSSB Dera Beas
Radha Soami Ji 🙏🌹💖