21/01/2024
"राम" एक जीवन पद्धति
एक बार श्री राम से भरत ने कहा, "एक बात पूछूँ" ? भईया !! माता कैकई ने आपको वनवास दिलाने के लिए मँथरा के साथ मिल कर जो 'षड्यंत्र' किया था, क्या वह राजद्रोह नहीं था ? फिर आपने माता कैकई को दण्ड क्यों नहीं दिया ?
राम मुस्कुराए …....बोले, "जानते हो भरत !! किसी कुल में एक चरित्रवान और धर्मपरायण पुत्र जन्म ले ले, तो उसका जीवन उसके असँख्य पीढ़ी के पितरों के अपराधों का प्रायश्चित कर देता है। जिस "माँ" ने तुम जैसे - महात्मा को जन्म दिया हो, उसे दण्ड कैसे दिया जा सकता है ..भरत ?
भरत सन्तुष्ट नहीं हुए, कहा, यह तो मोह है भईया; और राजा का दण्डविधान मोह से मुक्त होता है। कृपया एक राजा की तरह उत्तर दीजिये कि आपने माता को दण्ड क्यों नहीं दिया ? यह प्रश्न आपका अनुज नहीं, अयोध्या का एक सामान्य नागरिक कर रहा है।
राम गम्भीर हो गए.....कुछ क्षण के मौन के बाद कहा, "अपने सगे-सम्बन्धियों के किसी अपराध पर कोई दण्ड न देना ही इस सृष्टि का 'कठोरतम दण्ड' है भरत !!”
माता कैकई ने अपनी एक भूल का बड़ा - कठोर दण्ड भोगा है। वनवास के चौदह वर्षों में हम - चारों भाई अपने -अपने स्थान से परिस्थितियों से लड़ते रहे हैं; पर माता कैकई हर क्षण मरती रही हैं।
अपनी एक भूल के कारण उन्होंने अपना पति खोया, अपने चार-बेटे खोए, अपना समस्त सुख - सम्मान खोया, फिर भी वे उस "अपराध - बोध" से कभी मुक्त न हो सकीं। वनवास समाप्त हो गया तो परिवार के शेष - सदस्य प्रसन्न और सुखी हो गए; पर वे कभी प्रसन्न न हो सकीं। कोई 'राजा' किसी "स्त्री" को इससे कठोर - दण्ड क्या दे सकता है ?
मैं तो सदैव यह सोचकर दुखी हो जाता हूँ कि "मेरे कारण ही मेरी माँ को इतना कठोर - दण्ड भोगना पड़ा।
राम ने फिर कहा, "और उनकी भूल को अपराध समझना ही क्यों भरत !!.यदि मेरा वनवास न हुआ होता, तो संसार 'भरत' और 'लक्ष्मण' जैसे भाइयों के अतुल्य भ्रातृ - प्रेम को कैसे देख पाता ? मैंने तो केवल अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन मात्र किया था, पर तुम - दोनों ने तो मेरे - स्नेह में चौदह वर्ष का वनवास भोगा। वनवास न होता तो यह संसार सीखता कैसे कि भाइयों का सम्बन्ध होता कैसा है ? भरत के प्रश्न मौन हो गए थे। वे अनायास ही बड़े भाई से लिपट गए।
समझिये, राम कोई नारा नहीं हैं। राम एक आचरण हैं, एक चरित्र हैं , एक जीवन "जीने की शैली" हैं, पद्धति है।
सदा_स्वस्थ_रहें, मस्त_रहें