10/12/2019
ज्योतिष में ग्रह विचार
ग्रह धातु से अच् प्रत्यय के योग से निष्पन्न ग्रह शब्द की व्युत्पत्ति दो प्रकार से की जा सकती है। गृह्णाति गति विशेषान् इति। अथवा गृह्णाति फलदातृत्वेन जीवान् इति। अर्थात् जो जीवों को अर्थात् प्राणी समूह को उनके कर्मानुसार फल प्रदान करते हैं वे ग्रह हैं। इस व्याख्या के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु ये नौ संख्या वाले ग्रह हैं। जैसा कि कहा भी गया है —
सूर्यश्चन्द्रो मङ्गलश्च बुधश्चापि बृहस्पति:।
शुक्र: शनैश्चरो राहु: केतुश्चेति नवग्रहा:।।
गृह्णाति गति विशेषान् व्युत्पत्ति से पांच ग्रह मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि ही ग्रह कहे जा सकते हैं। क्योंकि र्तािकक दृष्टि से सूर्य एवं चन्द्रमा ग्रह लक्षण के अन्तर्गत नहीं आते हैं तथा राहु एवं केतु तमोग्रह (छाया ग्रह) अथवा पात विशेष हैं। पृथ्वी का गमन पथ एवं चन्द्रमा के गमनमार्ग जहाँ आपस में एक दूसरे को काटते हैं वही दोनों बिन्दु राहु केतु के नाम से जाने जाते हैं। वैदिक काल में पांच ग्रह ही माने जाते थे। ये पांचों ग्रह मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि ही थे। ऋग्वेद के एक मन्त्र में उल्लेख मिलता है —
अमी ये पंचोक्षणो मध्ये तस्थुर्महो दिव:।
देवत्रा नु प्रावच्यं सध्री चीनानि वावृदुवित्तं मे अस्य रोदिसी।। (ऋग्वेद १।१०५।१०)
``अर्थात् ये जो महाप्रबल पांच विस्तीर्ण द्युलोक के मध्य रहते हैं उनका स्तोत्र बना रहा हूँ। एक साथ आने वाले होते हुए भी वे सब दिन में चले गये हैं।'' इस मन्त्र में इन्हीं पांच ग्रहों का उल्लेख है। किन्तु स्मृतिकाल, जो वैदिक काल के ठीक पश्चात् है, में स्पष्ट रूप से नौ ग्रहों का उल्लेख होने लगा था। याज्ञवल्क्यस्मृति के अनुसार —
सूर्य: सोमो महीपुत्र: सोमपुत्रो बृहस्पति:।
शुक्र: शनैश्चरो राहु: केतुश्चेति ग्रहा: स्मृता:।।
(याज्ञवल्क्य स्मृति, आचाराध्याय, २९६)
इस प्रकार भारतीय ग्रन्थों में ग्रहों का वर्णन अत्यन्त प्राचीन है।
भगवान के असंख्य अवतार हुए हैं जिसमें ग्रह रूप जनार्दन नामक भी एक अवतार है। अर्थात् ग्रह भी भगवत् रूप हैं।
अवताराण्यनेकानि अजस्य परमात्मन:।
जीवानां कर्मफलदो ग्रहरूपी जनार्दन:।। (लोमशसंहिता ५।४१)
यह श्लोक बृहत्पाराशर होराशास्त्र २।३ में भी आया है।
मर्हिष पराशर तथा लोमश ऋषि का कथन है कि भगवान नारायण का अवतार ग्रहों द्वारा हुआ है यथा - सूर्य से राम का, चन्द्रमा से कृष्ण का, मंगल से नृिंसह का, बुध से बुध का, गुरु से वामन का, शुक्र से परशुराम का, शनि से कच्छप का, राहु से वराह का तथा केतु से मीन का अवतार हुआ है। इनके अतिरिक्त भी अवतार ग्रहों से हुए हैं जिनमें परमात्मा का अंश अधिक है वे खेचर कहलाते हैं। यथा—
रामावतार: सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायक:।
नृिंसहो भूमिपुत्रस्य बुद्ध: सोमसुतस्य च।।
वामनो बिबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च।
वूâर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य शूकर:।।
केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेऽपि खेटजा:।
परमात्मांशमधिकं येषु ते खेचराभिधा:।।
(बृहत्पाराशर होराशास्त्रम् २।५,६,७)
भारतीय शास्त्रों में कुछ ग्रहों को फल कत्र्तृत्व वाला अर्थात् शुभाशुभ फल करने वाला मानते हैं तो अन्य को पूर्र्वािजत कर्मफलों के सूचक मात्र मानते हैं। महाभारत में भी