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दुनिया की सबसे लंबी रेल यात्राओं में से एक, ट्रांस-साइबेरियन रेलवे मॉस्को से व्लादिवोस्तोक तक लगभग 9,289 किलोमीटर तक फैल...
21/01/2025

दुनिया की सबसे लंबी रेल यात्राओं में से एक, ट्रांस-साइबेरियन रेलवे मॉस्को से व्लादिवोस्तोक तक लगभग 9,289 किलोमीटर तक फैली हुई है जामे लगभग 7 दिन लगते हैं और यह आठ टाइम जोन को पार करे है।

इस चक्कर में मॉस्को, येकातेरिनबर्ग, नोवोसिबिर्स्क, इरकुत्स्क (बैकाल झील के धौरे), उलान-उडे और व्लादिवोस्तोक शामिल हैं। ट्रेनें बुनियादी से लेकर आलीशान तक की हैं, जिनमें प्रसिद्ध रोसिया ट्रेन और गोल्डन ईगल पर उच्च-स्तरीय यात्राएँ जैसे विकल्प शामिल हैं।

रस्ते में मुसाफिर यूराल पहाड़ ,साइबेरियाई ताइगा और प्रतिष्ठित झील बैकाल की घैल प्राकृतिक नज़ारे देखते हैं।

इस ट्रेन में स्थानीय लोगों से मिलने, क्षेत्रीय खाद्य पदार्थों का स्वाद लेने और रूसी शहरों और गांवों को देखने के अवसर मिलते हैं।

यह साल भर चलने वाली यात्रा है, हर मौसम इस प्रतिष्ठित मार्ग पर अपनी खूबसूरती लेकर आता है।

मजेदार तथ्य :
1. सबसे लंबा रेलवे: ट्रांस-साइबेरियन 9,289 किलोमीटर तक फैला है, जो यूरोप और एशिया दोनों को पार करता है।

2. आठ टाइम ज़ोन: ट्रेन के आठ टाइम ज़ोन से गुज़रने के कारण यात्री अपनी घड़ियों को बहुत ज़्यादा एडजस्ट करते हैं!

3. बैकाल झील: इस स्टॉप पर दुनिया की सबसे गहरी झील है, जिसमें पृथ्वी के 20% बिना जमे हुए मीठे पानी का भंडार है।

4. इंजीनियरिंग की खूबियाँ: इस रूट में 500 से ज़्यादा पुल और 200 सुरंगें शामिल हैं।

5. दुनिया का सबसे बड़ा लेनिन हेड: उलान-उडे में, आप लेनिन के सिर की एक विशाल मूर्ति देख सकते हैं, जो 25 फ़ीट ऊँची है!

27/08/2023
आज बाबू जी की तेरहवीं है। नाते-रिश्तेदार इकट्ठे हो रहे हैं पर उनकी बातचीत, हँसी मज़ाक देख-सुनकर उसका मन दुखी हो रहा है"को...
27/08/2023

आज बाबू जी की तेरहवीं है।

नाते-रिश्तेदार इकट्ठे हो रहे हैं पर उनकी बातचीत, हँसी मज़ाक देख-सुनकर उसका मन दुखी हो रहा है"कोई किसी के दुख में भी कैसे हँसी मज़ाक कर सकता है? पर किससे कहे,किसे मना करे" इसीलिये वह बाबूजी की तस्वीर के सामने जाकर आँख बंद करके चुपचाप बैठ गई।

अभी बीस दिन पहले ही की तो बात है,वह रक्षाबंधन पर मायके आई थी। तब बाबूजी कितने कमजोर लग रहे थे। सबके बीच होने के बावजूद उसे लगा कि जैसे वह कुछ कहना चाहते हों फिर मौका मिलते ही फुसफुसा कर धीरे से बोले भी थे .."बिट्टू... रमा तुम्हारी भाभी हमको भूखा मार देगी। आधा पेट ही खाना देती है, दोबारा माँगने पर कहती है कि परेशान ना करो ,जितना देते हैं उतना ही खा लिया करो। ज़्यादा खाओगे तो नुकसान करेगा फिर परेशान हम लोगों को करोगे " कहते-कहते उनका गला भर आया।

" पर कभी आपने बताया क्यों नही बाबूजी?" सुनकर सन्न रह गई वह और तुरंत अपने साथ लाई मिठाई से चार पीस बर्फी के निकाल कर बाबूजी को दे दिये। वह लगभग झपट पड़े,और जल्दी-जल्दी खाने लगे,ऐसा लग रहा था मानों बरसों से उन्होंने कुछ खाया ही ना हो।

"अरे,अरे,,,,इतना मत खिलाओ बिट्टू। तुम तो चली जाओगी पर अभी पेट ख़राब हो जायेगा तो हमको ही भुगतना पड़ेगा" तभी भाभी ने आकर ताना दिया।

तब मन मसोस कर वह रह गई थी और चलते-चलते दबे शब्दों में उसने भाभी से कुछ दिनों के लिए बाबूजी को अपने साथ ले जाने की बात कही तो भाभी तो कुछ न बोलीं पर भइया भड़क गये,"सारी उम्र किया है,तो अब भी कर लेंगें।

वैसे तूने ये बात क्यों कही? कुछ कहा क्या बाबूजी ने ?"

"नही भइया, नही.." वह हड़बड़ा गई और बाकी के शब्द उसके मन में ही रह गए। बड़े भाई से जवाब-सवाल कर भी कैसे सकती थी ?

बचपन से ही बेटियों को भाइयों से दबकर रहने का संस्कार जो कूट कूट कर भरा जाता है,पर जाते-जाते उसने एक बार पलटकर देखा तो उसके जन्मदाता तरसी निगाहों से उसे ही देख रहे थे। तब क्या पता था कि ये उनकी आख़िरी मुलाकात है।

इसके पाँच दिन बाद ही खब़र मिली कि "बाबूजी की हालत ठीक नहीं है,वो अस्पताल में हैं,आकर मिल जाओ" सुनकर छटपटा उठी वह और दूसरे दिन ही उनके पास पहुँच गई।

बाबूजी अर्धमूर्छित से थे,उसको पहचान भी नही पाये! वह उनके कान में फुसफुसाई "बाबूजी, देखिये मैं आपकी बिट्टू"

कई बार आवाज़ देने पर बामुश्किल उनकी आँखें हिली। "बि..ट्टू.. भू..ख.." उनकी अस्फुट सी आवाज़ सुनकर वह यूँ खुश हो गई मानो बरसों के प्यासे को जी भर के पानी पीने को मिल गया हो ..."बताइये,क्या खाना है बाबूजी..?" पूछते हुए उसकी आँखे भर आईं।

"आ,,लू टमाटर की स,,ब्ज़ी रो,,टी .." लड़खड़ाती आवाज़ में उनके मुँह से बोल निकले। जल्दी से उसने इंतज़ाम भी किया,पर देर हो चुकी थी! बाबूजी बगैर खाये पिये,भूखे ही इस सँसार से चले गये।

"बिट्टू,,बिट्टू ,,,,चलो,खाना खा लो" अचानक भइया की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ी।

"खाना?" वह धीरे से बोली "भूख नही है भइया"
बिट्टू थोड़ा सा खा लो भइया ने फिर कहा वह कुछ न बोली !

चुपचाप उठकर घरबालों वाले बिछे आसन पर बैठ गई। थाली में तरह-तरह के पकवान परोसे जा रहे थे। उसकी आँखों से आँसू बह निकले! कानों में बाबूजी के आख़िरी शब्द गूँज रहे थे..."आलू टमाटर की सब्जी,रोटी 🥺🥺🥺🥺

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Ghaziabad
201012

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