माहुरी चौपाल

माहुरी चौपाल दुनिया की सबसे कीमती चीज
"सच्ची ख़ुशी औ?

पूरे चार महीने बाद वो शहर से कमाकर गाँव लौटा था। अम्मा उसे देखते ही चहकी..."आ गया मेरा लाल! कितना दुबला हो गया है रे! खा...
10/04/2024

पूरे चार महीने बाद वो शहर से कमाकर गाँव लौटा था। अम्मा उसे देखते ही चहकी...

"आ गया मेरा लाल! कितना दुबला हो गया है रे! खाली पैसे बचाने के चक्कर में ढंग से खाता-पीता भी नहीं क्या!"

"बारह घंटे की ड्यूटी है अम्मा, बैठकर थोड़े खाना है! ये लो, तुम्हारी मनपसंद मिठाई!"--कहकर उसने मिठाई का डिब्बा माँ को थमा दी!

"कितने की है?"

"साढ़े तीन सौ की!"

"इस पैसे का फल नहीं खा सकता था! अब तो अंगूर का सीजन भी आ गया है!"--अम्मा ने उलाहना दिया।

पूरा दिन गाँव-घर से मिलने में बीत गया था! रात हुई, एकांत में उसने बैग खोलकर एक पैकेट निकाला और पत्नी की ओर बढ़ा दिया--

"क्या है ये?"

"चॉकलेट का डिब्बा, खास तुम्हारे लिए!"

"केवल मेरे लिए ही क्यों!"

"अरे समझा करो। सबके लिए तो मिठाई लायी ही है!"

"कितने का है?"

"आठ सौ का!"

"हांय!!"

"विदेशी ब्रांड है!"

"तो क्या हुआ!"

"तुम नहीं समझोगी! खाना, तब बताना!"

"पर घर में और लोग भी हैं। अम्मा, बाबूजी, तीन तीन भौजाइयां, भतीजे। सब खा लेते तो क्या हर्ज था!"

"अरे पगली, बस चार पीस ही है इसमें, सबके लिए कहाँ से लाता!"

"तो तोड़कर खा लेते!"

"और तुम!"

"बहुत मानते हैं मुझे?"

"ये भी कोई कहने की चीज है!"

"आह! कितनी भाग्यशाली हूँ मैं जो तुम मुझे मिले!"

उसकी आँखें चमक उठी--"मेरे जैसा पति बहुत भाग्य से मिलता है!"

"सच है! लेकिन पता है, ये सौभाग्य मुझे किसने दिया है?"

"किसने?"

"तुम्हारी अम्मा और बाबूजी ने! उन्होंने ही तुम्हारे जैसा हट्टा-कट्टा, सुंदर और प्यार करने वाला पति मुझे दिया है! सोचो, तुम्हारे जन्म पर खुशी मनाने के लिए मैं नहीं थी, एक अबोध शिशु से जवान बनने तक, पढ़ाने-लिखाने और नौकरी लायक बनाने तक मैं नहीं थी। मैं तुम्हारे जीवन में आऊं, इस लायक भी उन्होंने ही तुम्हें बनाया!"

"तुम आखिर कहना क्या चाहती हो?"

"यही कि ये पैकेट अब सुबह ही खुलेगा! एक माँ है, जो साढ़े तीन सौ की मिठाई पर भी इसलिए गुस्सा होती है कि उसके बेटे ने उन पैसों को अपने ऊपर खर्च नहीं किया! और वो बेटा आठ सौ का चॉकलेट चुपके से अपनी बीवी को दे, ये ठीक लग रहा है तुम्हें!"

वो चुप हो गया! पत्नी ने बोलना जारी रखा...

"अम्मा-बाबूजी और लोग गाँव में रहते हैं! तुम ही एकमात्र शहरी हो। बहुत सारी चीजें ऐसी होंगी, जो उन्हें इस जनम में नसीब तो क्या, उनका नाम भी सुनने को नहीं मिलेगा! भगवान ने तुम्हें ये सौभाग्य दिया है कि तुम उन्हें ऐसी अनसुनी-अनदेखी खुशियां दो! वैसे कल को हमारे भी बेटे होंगे! अगर यही सब वे करेंगे तो.......!"

अचानक उसे झटका लगा। चॉकलेट का डिब्बा वापस बैग में रख वो बिस्तर पर करवट बदल सुबकने लगा!

"क्या हुआ? बुरा लगा सुनकर!"

"..............!"

"मर्दों को रोना शोभा नहीं देता! खुद की खुशियों को पहचानना सीखो! जीवन का असल सुख परिजनों को खुश देखने में है! समझे पिया! ✍

🙏🙏💐🙏🙏🙏

Everyone

बिहार को बर्बाद करने के जिम्मेदार कौन कौन?छपरा के पास सारण जिले में मढ़ौरा में बिरला ग्रुप की Morton लेमनचूस, टॉफी की बड...
10/04/2024

बिहार को बर्बाद करने के जिम्मेदार कौन कौन?

छपरा के पास सारण जिले में मढ़ौरा में बिरला ग्रुप की Morton लेमनचूस, टॉफी की बड़ी प्रसिद्ध फैक्टरी थी।

बगल में बिरला की ही चीनी मिल भी थी इसलिए टॉफी की फैक्ट्री के लिए बगल से ही चीनी उपलब्ध थी

देखते ही देखते शानदार स्वाद की वजह से मॉर्टन विश्व प्रसिद्ध हो गई। टीवी एड और सभी पत्रिकाओं में एड आते थे। खूब बिकती थी।

भारत के हर दुकानदार की मजबूरी थी वह मॉर्टन रखे

तभी बिहार के एक तथाकथित बड़े नेता का एक रिश्तेदार की बुरी नजर उस फैक्ट्री पर पड़ी

फिर वो उस फैक्टरी से प्रत्येक महीने एक से डेढ़ लाख रुपये रंगदारी वसूलता था। यह मॉर्टन कम्पनी बिड़ला की थी। इसमें तैयार टॉफी के अन्दर खोया भी डाला जाता था। इसके लिए फैक्टरी ने गायें भी पाल रखी थीं, जिनके दूध से खोया तैयार होता था, मतलब एकदम गाय के दूध से बना खोया।

नेताजी के रिश्तेदार को नियमित रूप से रंगदारी मिल भी रही थी, लेकिन बाद में रंगदारी और बढ़ा दी गई। नहीं देने पर, गायों को खोलकर भगा दिया गया।

मजबूरन, पिछले 23 साल से यह फैक्टरी बन्द है। और बगल की शुगर फैक्ट्री भी बंद है

बिहार के कोई नेता, कोई पत्रकार इस पर प्रकाश डालेंगे? कोई सामाजिक न्याय के पैरोकार यह बताएँगे के बिहार के चीनी मिल क्यों बन्द हो गए?

बिहार को स्पेशल पैकेज नही बल्कि अच्छे नेताओ की जरूरत है

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यह उस जमाने की बात है जब अंग्रेज सरकार थी ।लाहौर के एक थाने में सब इंस्पेक्टर दौलत राम अग्रवाल चाहते थे कि उनका बेटा गंग...
10/04/2024

यह उस जमाने की बात है जब अंग्रेज सरकार थी ।लाहौर के एक थाने में सब इंस्पेक्टर दौलत राम अग्रवाल चाहते थे कि उनका बेटा गंगा राम अग्रवाल भी उन्हीं की तरह पुलिस में भर्ती होकर नाम कमाए।

इसलिए वह अपने एस पी के घर उसे लेकर जाया करते थे ताकि उसका मनोबल बढ़े

लेकिन गंगा राम ने कुछ और सोच रखी थी।उसे इंजीनियर बनना था। पढ़ने लिखने में तेज था इसलिए इम्पीरियल इंजीनियरिंग कॉलेज रूड़की में एडमिशन हो गया। एक बार जब वह छुट्टियों में घर आया तो अपने पिता जी से पता चला कि अचानक एस पी साहब की पत्नी को लेबर पेन शुरू हो गया है और एस पी साहब दौरे पर हैं।। गंगा राम दौड़ते हुए पहुंच गया एस पी आवास। वहां से सरकारी जीप पर लेकर निकल पड़ा किसी डाक्टर की खोज में।

तब लाहौर में न डाक्टर था न अस्पताल। बस वैद्य थे और हकीम थे और थीं बच्चे पैदा करने वालीं पेशेवर महिलाएं। किसी तरह डिलीवरी हुई।

दूसरे दिन जब एस पी साहब लौटे तो उन्हें बच्चे की खबर से खुशी भी हुई लेकिन अफ़सोस भी हुआ कि कैसे उनकी पत्नी मरते मरते बचीं। उन्होंने गंगा राम का हाथ पकड़ कर कहा कि तुम्हारा एहसान कभी नहीं भुलूंगा । मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं

गंगा राम ने कहा कि सर,जब आप जैसे पदाधिकारी को इतनी दिक्कत है तो समझिए कि आम जनता को कितना कष्ट होता है? अगर मदद करना चाहते हैं तो यहां एक अस्पताल बना दीजिए

गंगा राम ने डिजाइन किया और अंग्रेजी हुकूमत ने पैसे दिए।लाहौर का पहला अस्पताल बन गया जो बाद में मेडिकल कॉलेज बना। फिर तो गंगा राम ने स्कूल कौलेज चौक चौराहे बाजार म्यूजियम से लाहौर को पाट दिया। ऐसी खुबसूरत इमारतें बनाईं कि लाहौर को पूर्व का वेनिस कहा जाने लगा

अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा राम को सर की उपाधि दी

दिल्ली का सर गंगाराम अस्पताल भी उन्ही की देन है।

सर गंगा राम की मृत्यु सन् 1926 में हो गई।लाहौर को पहचान देने वाले रचनाकार की याद में उनकी आदमकद मूर्ति उसी मेडिकल कॉलेज के प्रांगण में लगाई गई जो उनका पहला निर्माण कार्य था।

वर्ष 1947 में भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान एक नया देश बन गया। आजादी के दिन लाहौर की सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी। भीड़ जब सर गंगाराम अस्पताल के पास पहुंची तो एक मौलवी ने कहा कि चूंकि अब हमारा मुल्क एक इस्लामिक मुल्क है इसलिए यह मूर्ति यहां नहीं रह सकती है।और भीड़ ने मूर्ति को तोड़ना शुरू कर दिया ।

उसी अस्पताल में पैदा हुए लड़के तोड़ रहे थे उस शख्स की मूर्ति जिसने उनके शहर को एक शक्ल दी थी क्योंकि सर गंगाराम हिंदू था

उस समय के कलक्टर ने अपनी डायरी में लिखा.."..कि कितनी नमकहराम कौम है ये जो अपनी जान बचाने वाले शख्स को भी नहीं बख्शती है।इस कौम का सर्वनाश निश्चित है "
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हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-...
10/04/2024

हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके, यह आम चलन था।

जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं, यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा ।

उस जमाने का देशी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि 2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है।

और उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था ।

टटीरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है।

हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टटीरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था । उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी ।

सब आस्तिक थे। दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था । यह एक सामान्य नियम था ।

बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता था।

बूढा बैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था, मरने तक उसकी सेवा होती थी।

उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है,अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें,कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए ??

जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था।

माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे।

पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है ।

वह पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवन व्यवहार में ही जीवन रस खोज लेता था,वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था..!

वह सचमुच अतुल्य भारत था।🙏

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कल एक ट्रैफिक सिग्नल पर लाल बत्ती होने से रुका हुआ था….मेरी बाइक से एकदम लग के एक बाइक थी जिसपर एक पति–पत्नी सवार थे, पत...
10/04/2024

कल एक ट्रैफिक सिग्नल पर लाल बत्ती होने से रुका हुआ था….

मेरी बाइक से एकदम लग के एक बाइक थी जिसपर एक पति–पत्नी सवार थे, पत्नी की गोद में कुछ महीने का बालक था।

नन्हे से शिशु को बरोबर ठंड की टोपी और स्वेटर मोजे पहनाए हुए थे और उसकी माता ने बालक की कमर में एक हाथ डालकर किसी सीट बेल्ट की तरह से उसे पकड़ रखा था।

इतने में सिग्नल ग्रीन हुआ, हम सभी की गाड़ी आगे बढ़ने लगी….

हॉर्न की कर्कश ध्वनियां, अगल बगल से ओवरटेक करने की कोशिश करती हुई कार और दो पहिया गाड़ियां और हिचकोले खाती उस बाइक पर वो नन्हा सा शिशु बड़े मजे से सोया हुआ था।

मेरा ध्यान अब भी उस नन्हे से बालक पर था!

इतने सब शोर शराबे में, गाड़ी के झटकों में, और हलचल में वो बच्चा जरा सा भी विचलित नहीं हो रहा था, ऐसी चैन की नींद में सोया था जिसके लिए आज आप और मेरे जैसे बड़े लोग तरसते है।

इस नन्हे से बालक की नींद के पीछे एक सरल सा मनोविज्ञान छुपा है..

वो ये की उसको भरोसा था उसकी मां पर! सौ प्रतिशत विश्वास!

इतना की नन्हे से बालक का जीवन गोद में बैठा कर हाथ से पकड़ने वाली उसकी मां के हवाले था और फिर भी वो निश्चिंत था।

मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी! उनके रहते मेरा बाल भी बांका नहीं हो सकता!

बस यही भरोसा उसे इतनी भीड़भाड़ में इतने शोर में चैन की नींद सुला रहा था।

मैने सोचा की इस नासमझ बच्चे के भरोसे का अगर 0.1% मुझमें ईश्वर के प्रति आ जाए तो फिर मेरे जीवन में क्या असाध्य है भला!

अगर इस नन्हे बालक जैसा भरोसा रहे तो मेरे जीवन में क्या बदलाव आयेंगे इसपर मैंने ध्यान दिया और कुछ क्षण के लिए ये अनुभव किया:

मेरे जीवन के धन संबंधित सारे अनावश्यक तनाव दूर है क्योंकि वो अन्नपूर्णा मां जो आज तक खिला रही है वो ही आगे भी भोजन का प्रबंध तो करेंगी ही करेंगी अपने बालक के लिए।
मेरे जीवन के शत्रु बाधा/संकट/विघ्न संबंधित सारे तनाव दूर है क्योंकि जिस मां लक्ष्मी ने गर्भ में पालन किया और रक्षा की, फिर शिशु अवस्था में रक्षा की और चलने बोलने समझने तक रक्षा करती रही वे आगे भी हर संकट से रक्षा करेंगी ही करेंगी।
मेरे जीवन के सारे रोग/शोक/भय से जुड़े तनाव दूर है क्योंकि जो मां भवानी ने आज तक प्राणों की रक्षा विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में की है वे ही आगे भी अपने बालक की सदैव सभी स्थितियों में रक्षा अवश्य करेंगी ही करेंगी।
मित्रों ये अनुभव थोड़े ही क्षणों के लिए था क्योंकि हम सांसारिक और कलियुगी बुद्धि के जीव है, मन पर से परत दर परत चढ़ी धूल को हटा के एक नन्हे बालक समान पूरा विश्वास प्राप्त करना बहुत दुर्लभ भी है और पर्याप्त साधना के द्वारा ही सम्भव है।

पर अगर उस सर्वशक्तिमान के प्रति किसी नन्हे बालक जैसा विश्वास हम लोगों में आ जाए तो जीवन का प्रत्येक क्षण आनन्द से ओत प्रोत हो जाए! हो जाए की नही?

जैसे वो नन्हा सा बालक प्रह्लाद जिसको भरोसा था की मेरे नारायण तो मुझे पहाड़ से नीचे गिरा दिए जाने पर अपनी गोद में ले लेंगे, वो तलवार के वार होने पर मेरे लिए कवच बन जायेंगे, वो हाथी के द्वारा रौंदे जाने पर मेरे लिए चट्टान बन जायेंगे और

वो जलती हुई होलिका में धधक धधक के जलने पर मेरे लिए बर्फ बन जायेंगे!

कल हमने इन्ही नन्हे भक्त राज प्रह्लाद की लीला का स्मरण करते हुए होली का रंग भरा त्यौहार मनाया।

तो ये भरोसा! ये विश्वास! अगर किसी नन्हे बालक से सीख लिया जाए और जीवन में परमात्मा के साथ इस विश्वास के नाते को जोड़ दिया जाए फिर क्या असम्भव कार्य है जो आपसे होना सम्भव ना हो!

सोच कर देखेंगे तो अद्भुत अनुभूति होगी।

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Hyderabad BJP candidate Madhavi Latha: 'मेरे पिता के पास तब साइकिल हुआ करती थी. वह मिलिट्री इंजीनियर सर्विस में स्टोर इं...
09/04/2024

Hyderabad BJP candidate Madhavi Latha: 'मेरे पिता के पास तब साइकिल हुआ करती थी. वह मिलिट्री इंजीनियर सर्विस में स्टोर इंचार्ज थे. जब भी कोई त्योहार होता था तो हैदराबाद के हिंदू और मुस्लिम सभी बड़े मजे से अपने त्योहार मनाते थे. जिस मोहल्ले में 100 हिंदू थे वहां आज सिर्फ 5 हिंदुओं के घर हैं. 1980-90 के दशक में वहां सांप्रदायिक दंगे हुए थे. मैं बहुत छोटी थी. रातभर डर लगता था. घर के पुरुष डंडा लेकर पहरा देते थे और घर की औरतों को मिर्ची की पोटली बनाकर तैयार रखना पड़ता था...' माधवी लता ने एक इंटरव्यू में यह खुलासा किया.

हैदराबाद से भाजपा उम्मीदवार ने कहा कि ऐसा इसलिए करना पड़ता था क्योंकि पता नहीं था कि आधी रात को एक अलग जगह से 10-15 लोग आ गए और सिर फोड़ दें. जरा सी आवाज हो तो मैं चौंक कर उठ जाती थी.माधवी ने कहा कि इतने सालों के बाद सच्चाई तो यह है कि तब सांप्रदायिक दंगे होते थे आज राजनीतिक दंगे होते हैं. फर्क कुछ नहीं रहा. हैदराबाद को आईटी सिटी के तौर पर जाना जाता है. इस पर माधवी लता ने कहा कि वह हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी है लेकिन वह जिसकी बात कर रही हैं वह हैदराबाद लोकसभा सीट है जिसमें 7 विधानसभा सीटें आती हैं.

कौन हैं माधवी लता?

जब से हैदराबाद लोकसभा सीट पर असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ भाजपा ने माधवी लता को उतारा है, वह चर्चा में बनी हुई हैं. भरतनाट्यम डांसर, सिंगर, कुशल वक्ता होने के साथ ही माधवी सोशल एक्टिविस्ट हैं. लोग उन्हें 'लेडी सिंघम' कहते हैं तो वह कहती हैं कि वक्त की जरूरत है. ओवैसी पर अटैक करते हुए माधवी कहती हैं कि हैदराबाद में आज भी कुछ नहीं बदला है. बेचारे मुसलमान भी उतने ही गरीब हैं जितने हिंदू. इस सीट को ओवैसी का गढ़ कहा जाता है. माधवी लता Virinchi Hospitals की चेयरपर्सन हैं. इसकी स्थापना उनके पति विश्वनाथ ने की.

मदरसों में खाना पहुंचाती हैं माधवी

माधवी लता हैदराबाद में कई मदरसों को फ्री खाना और दवाइयां आदि पहुंचाती हैं. रोजा के समय वह कपड़े, खाना, रेफ्रिजरेटर आदि देती हैं. हालांकि उन्होंने दावा किया कि वे (मुस्लिम समाज के लोग) कहते हैं कि मां किसी से मत बताना क्योंकि उन्हें चेतावनी मिलती है. माधवी ने दावा किया कि मौलाना साहब मेरे टीम मेंबर को कहते हैं कि आए तो टांग तोड़ देंगे.

महिलाओं को बच्चा पैदा करने से क्यों रोकती हैं?

इंटरव्यू में जब पूछा गया कि आप मुस्लिम महिलाओं से बच्चे पैदा नहीं करने को क्यों कहती हैं, तो माधवी ने जवाब दिया कि वह ये नहीं कहतीं कि आप बच्चे पैदा मत कीजिए. वह कहती हैं कि आप कितने भी बच्चे पैदा कीजिए. पांडवों को पैदा कीजिए, कौरवों को पैदा मत कीजिए. वह कहती हैं कि बच्चों को पैदा कीजिए लेकिन अगर आप खाना, पढ़ाई, कपड़ा नहीं दे पा रहे तो आप देश में उन्हें किसको दे रहे. उस बच्चे को पता भी नहीं है कि वह धरती पर क्यों आया है.

क्या हैदराबाद में लड़कियां बेची जाती हैं?

ओल्ड हैदराबाद में माधवी लता यह क्यों कहती हैं कि यहां लड़कियां बेची जाती हैं? माधवी ने जवाब दिया, '15 दिन पहले की बात है. मिडिल ईस्ट से एक लड़की ने अपनी मां को हैदराबाद फोन किया. मम्मा आप वहां दावत दे दीजिए अगर पैसे हैं तो, आपकी बेटी की 18 बार शादी हुई है. ये सच्चाई है. 16 साल की लड़की की 70 साल के इंसान से शादी होती है अरब में. लड़की तो लड़की होती है मजहब कहां से आया. मेरी भी दो लड़कियां हैं. मैं ये समझाती हूं औरतों को.'

माधवी ने कहा कि मां तो चाहती है कि बेटी अच्छे और इज्जतदार घर में जाए, अच्छे लड़के से शादी हो. पढ़ी-लिखी हो और उसकी गृहस्थी अच्छे से बसे.

वे 2-4 बार शादियां कराते हैं

उन्होंने दावा किया कि हैदराबाद में कई गलियां हैं पसमांदा मुस्लिमों की. जिनकी आवाज चारदीवारों से बाहर नहीं निकलती है. जो गरीबी के दलदल में 2 बार, 4 बार शादियां करवाते हैं क्योंकि उन पैसों से 7 या 8 बच्चों को खाना मिलता है. यह कहते हुए माधवी की आंखों में आंसू आ गए.

माधवी लता कई मुस्लिम संगठनों और ट्रस्ट से जुड़ी हैं. मुस्लिम महिला संगठनों के साथ मिलकर वह कई जनहित के काम कर रही हैं. यही वजह है कि उन्होंने दावा किया है कि इस बार ओवैसी डेढ़ लाख वोटों से हारेंगे. आईबी की रिपोर्ट आने के बाद सरकार ने माधवी लता को वाई प्लस की सुरक्षा दी है.
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चालीस पार करने के बाद बहुत तकलीफ होती है...कुछ अच्छा नही लगता..तीस पर थे तब कितना अच्छा लगता था.. कितना उत्साह था life म...
09/04/2024

चालीस पार करने के बाद बहुत तकलीफ होती है...
कुछ अच्छा नही लगता..
तीस पर थे तब कितना अच्छा लगता था.. कितना उत्साह था life में..
कभी भी कही भी जा सकते थे..अब बाहर निकलने का मन हि नही करता...
बीस पर थे तब तो बहार ही कुछ और थी.. कितना भी काम करलो थकते नही थे..
पर अब तो किसी काम मे मन नही लगता...
45 तक पहुच जायेगे तो ना जाने क्या होगा सोचकर ही डर जाते है।..
नही नही
मै उम्र की बात नही कर रहा हूँ... तापमान के बारे में बोल रहा था...
😀😀😀😀😀
Everyone

09/04/2024

एक बार जरुर पढ़े ये छोटी सी कहानी:

राजा हर्षवर्धन युद्ध में हार गए।

हथकड़ियों में जीते हुए पड़ोसी राजा के सम्मुख पेश किए गए। पड़ोसी देश का राजा अपनी जीत से प्रसन्न था और उसने हर्षवर्धन के सम्मुख एक प्रस्ताव रखा...

यदि तुम एक प्रश्न का जवाब हमें लाकर दे दोगे तो हम तुम्हारा राज्य लौटा देंगे, अन्यथा उम्र कैद के लिए तैयार रहें।

प्रश्न है.. एक स्त्री को सचमुच क्या चाहिए होता है ?

इसके लिए तुम्हारे पास एक महीने का समय है हर्षवर्धन ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया..

वे जगह जगह जाकर विदुषियों, विद्वानों और तमाम घरेलू स्त्रियों से लेकर नृत्यांगनाओं, वेश्याओं, दासियों और रानियों, साध्वी सब से मिले और जानना चाहा कि एक स्त्री को सचमुच क्या चाहिए होता है ? किसी ने सोना, किसी ने चाँदी, किसी ने हीरे जवाहरात, किसी ने प्रेम-प्यार, किसी ने बेटा-पति-पिता और परिवार तो किसी ने राजपाट और संन्यास की बातें कीं, मगर हर्षवर्धन को सन्तोष न हुआ।

महीना बीतने को आया और हर्षवर्धन को कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला..

किसी ने सुझाया कि दूर देश में एक जादूगरनी रहती है, उसके पास हर चीज का जवाब होता है शायद उसके पास इस प्रश्न का भी जवाब हो..

हर्षवर्धन अपने मित्र सिद्धराज के साथ जादूगरनी के पास गए और अपना प्रश्न दोहराया।

जादूगरनी ने हर्षवर्धन के मित्र की ओर देखते हुए कहा.. मैं आपको सही उत्तर बताऊंगी परंतु इसके एवज में आपके मित्र को मुझसे शादी करनी होगी ।

जादूगरनी बुढ़िया तो थी ही, बेहद बदसूरत थी, उसके बदबूदार पोपले मुंह से एक सड़ा दाँत झलका जब उसने अपनी कुटिल मुस्कुराहट हर्षवर्धन की ओर फेंकी ।

हर्षवर्धन ने अपने मित्र को परेशानी में नहीं डालने की खातिर मना कर दिया, सिद्धराज ने एक बात नहीं सुनी और अपने मित्र के जीवन की खातिर जादूगरनी से विवाह को तैयार हो गया

तब जादूगरनी ने उत्तर बताया..

"स्त्रियाँ, स्वयं निर्णय लेने में आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं | "

यह उत्तर हर्षवर्धन को कुछ जमा, पड़ोसी राज्य के राजा ने भी इसे स्वीकार कर लिया और उसने हर्षवर्धन को उसका राज्य लौटा दिया

इधर जादूगरनी से सिद्धराज का विवाह हो गया, जादूगरनी ने मधुरात्रि को अपने पति से कहा..

चूंकि तुम्हारा हृदय पवित्र है और अपने मित्र के लिए तुमने कुरबानी दी है अतः मैं चौबीस घंटों में बारह घंटे तो रूपसी के रूप में रहूंगी और बाकी के बारह घंटे अपने सही रूप में, बताओ तुम्हें क्या पसंद है ?

सिद्धराज ने कहा.. प्रिये, यह निर्णय तुम्हें ही करना है, मैंने तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया है, और तुम्हारा हर रूप मुझे पसंद है ।

जादूगरनी यह सुनते ही रूपसी बन गई, उसने कहा.. चूंकि तुमने निर्णय मुझ पर छोड़ दिया है तो मैं अब हमेशा इसी रूप में रहूंगी, दरअसल मेरा असली रूप ही यही है।

बदसूरत बुढ़िया का रूप तो मैंने अपने आसपास से दुनिया के कुटिल लोगों को दूर करने के लिए धरा हुआ था ।

अर्थात, सामाजिक व्यवस्था ने औरत को परतंत्र बना दिया है, पर मानसिक रूप से कोई भी महिला परतंत्र नहीं है।

इसीलिए जो लोग पत्नी को घर की मालकिन बना देते हैं, वे अक्सर सुखी देखे जाते हैं। आप उसे मालकिन भले ही न बनाएं, पर उसकी ज़िन्दगी के एक हिस्से को मुक्त कर दें। उसे उस हिस्से से जुड़े निर्णय स्वयं लेने दें.

राही

*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।।*

🙏🙏🙏🌳🌳🌳🙏🙏🙏

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नया भारत, अटल सेतुयह जो मुंबई में अटल सेतु बना है उसके बारे में बहुत कम लोगों को पता होगा1972 में इसका प्रस्ताव आया1981 ...
08/04/2024

नया भारत, अटल सेतु

यह जो मुंबई में अटल सेतु बना है उसके बारे में बहुत कम लोगों को पता होगा

1972 में इसका प्रस्ताव आया

1981 में जेआरडी टाटा ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर प्रस्ताव भेजा कि अगर हम यह ब्रिज बनाते हैं तो बहुत सारे डीजल पेट्रोल का बचत होगा और समय की बचत होगी

1984 में प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रोजेक्ट को मंजूर किया लेकिन फाइल ठंडा बस्ती में डाल दी गई

2004 में प्रोजेक्ट फाइल निकाली गई

2008 में टेंडर निकला जिसे रिलायंस इन्फ्रा ने हासिल किया लेकिन बाद में एक कमीशन बाजी की वजह से कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर दिया गया एक बार फिर यह फाइल ठंडा बस्ती में चली गई

2014 में नरेंद्र मोदी सत्ता में आए

2015 में प्रोजेक्ट फाइल निकाली गई

2016 में कॉन्ट्रैक्ट निकला पीएम मोदी ने प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया

2024 में मोदी जी ने उद्घाटन किया

सोचिए कांग्रेस के समय में काम कैसे होते थे

भारत की धरती पर बोझ हैं गांडी परिवार और उनके चमचे कांग्रेसी

जय श्री राम

🚩🚩 मोदीजी हैं तो मुमकिन है🚩🚩

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08/04/2024

मम्मी मैं आ रही हूँ।" बेटी अंजली की आवाज सुनकर सुमित्रा चौक गई। फिर बडबडाने लगी। अभी पिछले हफ्ते ही तो वापस गई

थी। अब फिर आ रही है। जबसे शादी हुई है साल भर में पच्चीस- तीस बार आ चुकी है। हर बार किसी न किसी बात पर आनंद (दामाद) से लड़क़र आती है और आते ही एलान करती है कि मम्मी अब मैं वापिस नहीं जाउंगी। फिर भावना (बहू) से तरह-तरह की फरमाइशें करती और पूरे माह का बजट बिगड़ देती। पापा जी की लाड़ली हुआ करती थी। इसीलिये उन्होंने बहुत सर पर चढ़ा रखा था। वो तो चले गए पर ये लड़की अब लगभग बेकाबू हो चुकी है। किसी की सुनती ही नहीं। बस अपनी मनमानी करती रहती है। राम ही जाने ये कब और कैसे सुधरेगी। आनंद और बाकी ससुराल वाले सीधे सादे हैं। वर्ना अभी तक - - - - ।

बाहू की पीछे से आई और बोली,

"नहीं मम्मी जी, नन्द जी के लिए ऐसा-वैसा कुछ मत कहिये। आप कहो तो मैं उनको सबक सिखाऊँ, ऐसा सबक जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।" मम्मी बोली,

"बाहू, ऐसा हो जाए तो मुझ पर बहुत उपकार होंगे।"

"अरे नहीं मम्मी जी उपकार वाली कोई बात नहीं बस आपको सबके भले के लिए थोड़ा झूठ बोलना और नाटक करना होगा।"

"भावना बेटी, मैं तैयार हूँ। यह फोड़ा नासूर में बदले इसके पहले ही इसका इलाज जरूरी हैं।"

अंजली फोन करने के डेढ़ घंटे अंदर, मम्मी में आ गई, कहते हुए मम्मी से लिपटने आई। मम्मी ने इशारे से उसे दूर ही रोका और कहा,

"अंजली बेटी, अच्छा हुआ तू आ गई। मेरा सर फटा जा रहा हैं जरा दबा दे।"

"पर मम्मी आपको हुआ क्या हैं?"

बेटी, मुझे कल रात से वायरल फीवर हो गया हैं।"

"अरे तो भाभी कहाँ हैं। क्या वो अपनी सास के सेवा भी नहीं कर सकती।"

"नहीं बेटी, वो होती तो कोई बात ही नहीं होती। कल उसके पापा जी की तबियत खराब होने का फोन आया था तो वो उन्हें देखने गई है। अच्छा हुआ तू आ गई।अब तू पन्द्रह दिन या महीना भर घर सम्हाल लेगी। गृह सहायिका भी दो-चार दिन छुट्टी लेने की बात कह रही थी। उसे किसी शादी में जाना है। शरद (बेटा) के कमरे का ऐसी भी खराब है। शरद को ठीक करवाने का समय ही नहीं मिला।" अंजली बोली,

" मम्मी जी,आनंद का फोन आया था। वो सॉरी कह रहे हैं और बुला रहे हैं। जाना पड़ेगा नहीं तो नाराज हो जाएंगे। अभी भैय्या आते होंगे वो आपकी देखभाल कर ही लेंगे।" उसके जाने के ऑटो की आवाज सुनते ही पड़ौस से भावना आई और गायत्री से ये कहते हुए लिपट गई कि मम्मी जी कैसा रहा ये नाटक और "सबक"? और दोनों खिलखिला कर हंस दिए।

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1-Divorce (अंग्रेजी)2-तलाक (उर्दू)कृपया हिन्दी का शब्द बताए...??कहानी आजतक के Editor... संजय सिन्हा की लिखी है...।तब मैं...
08/04/2024

1-Divorce (अंग्रेजी)

2-तलाक (उर्दू)

कृपया हिन्दी का शब्द बताए...??

कहानी आजतक के Editor... संजय सिन्हा की लिखी है...।

तब मैं... 'जनसत्ता' में... नौकरी करता था...। एक दिन खबर आई कि... एक आदमी ने झगड़े के बाद... अपनी पत्नी की हत्या कर दी...। मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि... "पति ने अपनी बीवी को मार डाला"...! खबर छप गई..., किसी को आपत्ति नहीं थी...। पर शाम को... दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए... प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी... सीढ़ी के पास मिल गए...। मैंने उन्हें नमस्कार किया... तो कहने लगे कि... "संजय जी..., पति की... 'बीवी' नहीं होती...!"

“पति की... 'बीवी' नहीं होती?” मैं चौंका था

" “बीवी" तो... 'शौहर' की होती है..., 'मियाँ' की होती है..., पति की तो... 'पत्नी' होती है...! "

भाषा के मामले में... प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था..., हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि... "भाव तो साफ है न ?" बीवी कहें... या पत्नी... या फिर वाइफ..., सब एक ही तो हैं..., लेकिन मेरे कहने से पहले ही... उन्होंने मुझसे कहा कि... "भाव अपनी जगह है..., शब्द अपनी जगह...! कुछ शब्द... कुछ जगहों के लिए... बने ही नहीं होते...! ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है...।"

खैर..., आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया..., आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं...। लेकिन इसके लिए... आपको मेरे साथ... निधि के पास चलना होगा...।

निधि... मेरी दोस्त है..., कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था...। फोन पर उसकी आवाज़ से... मेरे मन में खटका हो चुका था कि... कुछ न कुछ गड़बड़ है...! मैं शाम को... उसके घर पहुंचा...। उसने चाय बनाई... और मुझसे बात करने लगी...। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं..., फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि... नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है...।

मैंने पूछा कि... "नितिन कहां है...?" तो उसने कहा कि... "अभी कहीं गए हैं..., बता कर नहीं गए...।" उसने कहा कि... "बात-बात पर झगड़ा होता है... और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है..., ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि... अलग हो जाएं..., तलाक ले लें...!"

निधि जब काफी देर बोल चुकी... तो मैंने उससे कहा कि... "तुम नितिन को फोन करो... और घर बुलाओ..., कहो कि संजय सिन्हा आए हैं...!"

निधि ने कहा कि... उनकी तो बातचीत नहीं होती..., फिर वो फोन कैसे करे...?!!!

अज़ीब सँकट था...! निधि को मैं... बहुत पहले से जानता हूं...। मैं जानता हूं कि... नितिन से शादी करने के लिए... उसने घर में कितना संघर्ष किया था...! बहुत मुश्किल से... दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे..., फिर धूमधाम से शादी हुई थी...। ढ़ेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं... ऐसा लगता था कि... ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है...! पर शादी के कुछ ही साल बाद... दोनों के बीच झगड़े होने लगे... दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे... और आज उसी का नतीज़ा था कि... संजय सिन्हा... निधि के सामने बैठे थे..., उनके बीच के टूटते रिश्तों को... बचाने के लिए...!

खैर..., निधि ने फोन नहीं किया...। मैंने ही फोन किया... और पूछा कि... "तुम कहां हो... मैं तुम्हारे घर पर हूँ..., आ जाओ...। नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा..., पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया...।

अब दोनों के चेहरों पर... तनातनी साफ नज़र आ रही थी...। ऐसा लग रहा था कि... कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी... आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे...! दोनों के बीच... कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी...!!

नितिन मेरे सामने बैठा था...। मैंने उससे कहा कि... "सुना है कि... तुम निधि से... तलाक लेना चाहते हो...?!!!

उसने कहा, “हाँ..., बिल्कुल सही सुना है...। अब हम साथ... नहीं रह सकते...।"

मैंने कहा कि... "तुम चाहो तो... अलग रह सकते हो..., पर तलाक नहीं ले सकते...!"

“क्यों...???

“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है...!”

"अरे यार..., हमने शादी तो... की है...!"

“हाँ..., 'शादी' की है...! 'शादी' में... पति-पत्नी के बीच... इस तरह अलग होने का... कोई प्रावधान नहीं है...! अगर तुमने 'मैरिज़' की होती तो... तुम "डाइवोर्स" ले सकते थे...! अगर तुमने 'निकाह' किया होता तो... तुम "तलाक" ले सकते थे...! लेकिन क्योंकि... तुमने 'शादी' की है..., इसका मतलब ये हुआ कि... "हिंदू धर्म" और "हिंदी" में... कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद... अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं....!!!"

मैंने इतनी-सी बात... पूरी गँभीरता से कही थी..., पर दोनों हँस पड़े थे...! दोनों को... साथ-साथ हँसते देख कर... मुझे बहुत खुशी हुई थी...। मैंने समझ लिया था कि... रिश्तों पर पड़ी बर्फ... अब पिघलने लगी है...! वो हँसे..., लेकिन मैं गँभीर बना रहा...

मैंने फिर निधि से पूछा कि... "ये तुम्हारे कौन हैं...?!!!"

निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि... "पति हैं...! मैंने यही सवाल नितिन से किया कि... "ये तुम्हारी कौन हैं...?!!! उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि..."बीवी हैं...!"

मैंने तुरंत टोका... "ये... तुम्हारी बीवी नहीं हैं...! ये... तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं.... क्योंकि... तुम इनके 'शौहर' नहीं...! तुम इनके 'शौहर' नहीं..., क्योंकि तुमने इनसे साथ "निकाह" नहीं किया... तुमने "शादी" की है...! 'शादी' के बाद... ये तुम्हारी 'पत्नी' हुईं..., हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से... बन कर आती है...! तुम भले सोचो कि... शादी तुमने की है..., पर ये सत्य नहीं है...! तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ..., मैं सबकुछ... अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा...!"

बात अलग दिशा में चल पड़ी थी...। मेरे एक-दो बार कहने के बाद... निधि शादी का एलबम निकाल लाई..., अब तक माहौल थोड़ा ठँडा हो चुका था..., एलबम लाते हुए... उसने कहा कि... कॉफी बना कर लाती हूं...।"

मैंने कहा कि..., "अभी बैठो..., इन तस्वीरों को देखो...।" कई तस्वीरों को देखते हुए... मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई..., जहाँ निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे...। और पाँव~पूजन की रस्म चल रही थी...। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली... और उनसे कहा कि... "इस तस्वीर को गौर से देखो...!"

उन्होंने तस्वीर देखी... और साथ-साथ पूछ बैठे कि... "इसमें खास क्या है...?!!!"

मैंने कहा कि... "ये पैर पूजन का रस्म है..., तुम दोनों... इन सभी लोगों से छोटे हो..., जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं...।"

“हां तो....?!!!"

“ये एक रस्म है... ऐसी रस्म सँसार के... किसी धर्म में नहीं होती... जहाँ छोटों के पांव... बड़े छूते हों...! लेकिन हमारे यहाँ शादी को... ईश्वरीय विधान माना गया है..., इसलिए ऐसा माना जाता है कि... शादी के दिन पति-पत्नी दोनों... 'विष्णु और लक्ष्मी' के रूप हो जाते हैं..., दोनों के भीतर... ईश्वर का निवास हो जाता है...! अब तुम दोनों खुद सोचो कि... क्या हज़ारों-लाखों साल से... विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं...?!!! दोनों के बीच... कभी झिकझिक हुई भी हो तो... क्या कभी तुम सोच सकते हो कि... दोनों अलग हो जाएंगे...?!!! नहीं होंगे..., हमारे यहां... इस रिश्ते में... ये प्रावधान है ही नहीं...! "तलाक" शब्द... हमारा नहीं है..., "डाइवोर्स" शब्द भी हमारा नहीं है...!"

यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि... "बताओ कि... हिंदी में... "तलाक" को... क्या कहते हैं...???"

दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि... "दरअसल हिंदी में... 'तलाक' का कोई विकल्प ही नहीं है...! हमारे यहां तो... ऐसा माना जाता है कि... एक बार एक हो गए तो... कई जन्मों के लिए... एक हो गए तो... प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता..., उसे करने की कोशिश भी मत करो...! या फिर... पहले एक दूसरे से 'निकाह' कर लो..., फिर "तलाक" ले लेना...!!"

अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ... काफी पिघल चुकी थी...!

निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी...। फिर उसने कहा कि... "भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं...।"

वो कॉफी लाने गई..., मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं...। बहुत जल्दी पता चल गया कि... बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं..., बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं..., जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं...।

खैर..., कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली...। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि... निधि ने रोक लिया..., “भैया..., इन्हें शुगर है... चीनी नहीं लेंगे...।"

लो जी..., घंटा भर पहले ये... इनसे अलग होने की सोच रही थीं...। और अब... इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं...!

मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि... "अब तुम लोग... अगले हफ़्ते निकाह कर लो..., फिर तलाक में मैं... तुम दोनों की मदद करूंगा...!"

शायद अब दोनों समझ चुके थे.....

हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है...!

इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है...!!

👆उपरोक्त लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा..., जो सनातन धर्म और संस्कृति से जुड़ा है...। आप सभी से निवेदन है कि... समय निकाल कर इसे पढ़ें और आगे शेयर ज़रूर करें 🙏

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शाम हो चुकी थी. अवतार सिंह अपनी पत्नी शर्मीला का इंतज़ार कर रहे थे.शर्मीला जी एक ग्राहक के घर अचार की होम डिलीवरी के लिए ...
07/04/2024

शाम हो चुकी थी. अवतार सिंह अपनी पत्नी शर्मीला का इंतज़ार कर रहे थे.

शर्मीला जी एक ग्राहक के घर अचार की होम डिलीवरी के लिए गई हुई थीं. वे चिंतित थे कि शर्मिला जल्दी घर पहुंच जाएं, वरना जैसे-जैसे रात होती जाएगी, ट्रैफिक बढ़ती जाएगी.

अवतार सिंह को रिटायर हुए सात महीने हो गए हैं. बीकॉम पास करते ही वे एक फर्म में अकाउंटेंट की पोस्ट पर लग गए थे. उनके पिता श्री स्वरूपचंद सिंह भी उसी फर्म में काम करते थे, लेकिन अवतार सिंह यह नहीं चाहते थे कि उनका बेटा एक मामूली-सा अकाउंटेंट बनकर रह जाए, इसलिए उन्होंने अपने बेटे तन्मय को योजनाबद्ध रूप से पढ़ाया. शुरू से ही वे उसकी पढ़ाई पर ध्यान देते रहे. यह उनकी दूरदृष्टि का ही परिणाम था कि उनका बेटा आईटी इंजीनियर बन गया और आज वह अमेरिका में एक बड़ी कंपनी में रीजनल हेड है.

तन्मय को जब अमेरिका में नौकरी मिली, तो अवतार सिंह की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्हें लगा कि उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने अपने बेटे को सही जगह फिट कर दिया. लेकिन उन्हें क्या पता था कि बेटे को विदेश इतना भा जाएगा कि वह अपने देश के लिए मिस फिट हो जाएगा.

अवतार सिंह जब तक नौकरी करते रहे, तब तक उन्हें बेटे की कमी नहीं खली, मगर जब से रिटायर हुए हैं, बेटे को हर पल याद करते हैं. अगर बेटा आज यहां होता, तो रिटायरमेंट के बाद उन्हें अपना घर भरा-भरा लगता. बेटे-बहू के अलावा अपनी तीन साल की पोती तान्या को भी वह बहुत मिस करते हैं.

अवतार सिंह कभी-कभी सोचते हैं कि अगर उन्हें अपने बेटे की इतनी कमी खलती है, तो उनकी पत्नी शर्मीला को बेटे की कितनी याद आती होगी. वह तो उसकी मां है.

जवानी तो सुनहरे भविष्य की आशा में काम करते-करते खप जाती है, मगर वह भविष्य जब बुढ़ापे का रूप धरकर आता है, तो बेहद बदरंग और बोझिल हो जाता है.

पिछले दो साल से अवतार सिंह अपने रिटायरमेंट का इंतज़ार कर रहे थे. इतने बरसों से एक ही जगह काम करते-करते ऊब गए थे. उन्हें लगता था कि एक दिन बेटा विदेश से लौट आएगा और सब मिलकर आनंद के साथ रहेंगे. आज जब वे रिटायर हो चुके हैं, तो परिस्थितियां एकदम उलट हैं. बेटा लौटना नहीं चाहता और वे घर बैठे-बैठे उकता गए हैं. कोई कितना टीवी देखे, कहां तक क्रिकेट मैच देखे? पार्क में भी कितने घंटे बिताए जा सकते हैं भला! आख़िरकार घर लौटना ही पड़ता है और सूना घर काटने को दौड़ता है.

पहले पत्नी शिकायत करती थी कि वे दफ़्तर चले जाते हैं और बेटा विदेश में बैठा है. वह अकेली कितना दीवारों से सिर फोड़े.

अंततः शर्मीला जी ने अपने आपको व्यस्त रखने का तरीक़ा ढूंढ़ लिया. वे पास-पड़ोस की महिलाओं को कुकिंग सिखाने लगीं.

महिलाओं की घरेलू पार्टियों में वह केटरिंग का काम कर देती थीं. धीरे-धीरे उन्हें इस काम में मज़ा आने लगा और पैसा भी मिलने लगा.

इन सात-आठ सालों में शर्मिलाजी ने अपना दायरा बढ़ा लिया है. उनके हुनर, काम के अनुभवों और जानकारियों को देखते हुए महिलाएं उन्हें अपने घर में होनेवाले पारिवारिक और धार्मिक आयोजनों की भी ज़िम्मेदारी देने लगी हैं. नामकरण संस्कार, मुंडन, गोदभराई, जन्मदिन, सगाई के अलावा धार्मिक आयोजनों के कार्यक्रमों का ऑर्डर भी शर्मीला जी को मिलने लगा है.

शर्मीलाजी ने अपनी मदद के लिए पास की बस्ती की कई ज़रूरतमंद महिलाओं को अपने साथ काम पर रखा है. इस तरह वे अन्य महिलाओं को सम्मानपूर्वक अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करती रहती हैं. अब शर्मीलाजी अपने काम के चलते दोपहर को अक्सर बाहर ही रहती हैं और अवतार सिंह पूरी दोपहर बोर होते रहते हैं.

कुछ काम न हो, तो नींद भी नहीं आती. घर में जितनी भी किताबें थीं इस दौरान उन्होंने पढ़ डालीं. आज उन्हें पत्नी का काम करना खल रहा है. वे ख़ुद को उपेक्षित समझ रहे हैं. अब उन्हें समझ में आ रहा था कि जब वे नौकरी कर रहे थे, उन दिनों उनकी पत्नी भी कितना अकेलापन महसूस करती होगी. सच ही है, जब तक ख़ुद पर न बीते दूसरे का दुख समझ नहीं आता. अब उन्हें अपनी पत्नी से सहानुभूति होने लगी है. उनको चाय की तलब हुई. वे जब भी काम से लौटते थे, शर्मीला जी तुरंत पानी और चाय लेकर हाज़िर रहती थीं. आज वे बाहर से आती हैं, तो आने पर चाय भी वही बनाती हैं.

तभी घंटी बजी. अवतारजी ने तेज़ी से उठकर दरवाज़ा खोला. शर्मीला जी थकी हुई थीं, पर थोड़ी उत्साहित भी. जब वे किचन में जाने लगीं, तो अवतार जी ने उन्हें टीवी देखने के लिए पास बिठा लिया. पांच मिनट बाद वे उठकर चले गए. फिर जब वे लौटे, तो उनके हाथ में चाय की ट्रे थी.

शर्मीला जी तो आश्‍चर्य से चौंक पड़ीं, “अरे, आपने क्यों चाय बनाई? मैं तो जा ही रही थी. आपने ही बिठा लिया था.” जैसे किसी ग़लती की माफ़ी मांग रही हों.

अवतारजी मुस्कुराए, बोले, “चलो, आज से एक काम करते हैं, जो घर में रहेगा, वो बाहर से आनेवाले को चाय पिलाएगा.”

शर्मीला जी के लिए यह दूसरा आश्‍चर्य! उनका जी चाहा कि बाहर देख आएं कि शाम को यह कौन-सा नया सूरज निकला है. फिर उन्होंने

शरारतभरे अंदाज़ में पूछा, “अगर दोनों एक साथ बाहर से आएं तो?”

“तो मैं पानी पिलाऊंगा और तुम चाय.” अवतारजी ने ठहाका लगाया.

यह सुनकर शर्मीलाजी को अच्छा लगा कि उनके पति अब उनके बारे में सोचने लगे हैं. रात में खाना बनाने में भी अवतारजी ने अपनी पत्नी की मदद की.

इस तरह दोनों पति-पत्नी ने कुछ व़क्त साथ गुज़ारा. अवतारजी को लगा कि इतने सालों में जीवन की आपाधापी में कुछ छूट गया था, जो आज उन्हें मिल गया है.

पति-पत्नी गृहस्थी की गाड़ी मिलकर खींचते हैं, मगर दोनों एक-दूसरे से कितने दूर-दूर रहते हैं. अगर दोनों क़रीब आ जाएं, तो जीवन का यह सफ़र आनंद से भर उठेगा. उन्हें फिर किसी और की दरकार नहीं रहेगी, चाहे वह अपने बच्चे ही क्यों न हों!

अवतार जी ने पत्नी से ज़िद की कि वे दोनों आज साथ-साथ मॉर्निंग वॉक पर जाएंगे. पति के साथ सुबह-सुबह सैर पर जाना शर्मीलाजी के लिए एक नया अनुभव था. वहीं घास पर बैठे-बैठे शर्मीलाजी ने बताया कि उन्हें एक नया काम मिला है और क्या उन्हें यह काम करना चाहिए?

“पहले काम तो बताओ. फिर फैसला करूंगा कि तुम्हें करना चाहिए या नहीं?” अवतार सिंह ने गंभीर मुद्रा बनाकर कहा.

शर्मिलाजी बोलीं, “कल जिनके घर मातारानी की चौकी थी, उनके यहां एक प्रस्ताव पास हुआ कि वैष्णो देवी की यात्रा पर जाया जाए और इसका टूर ऑपरेटर मुझे बनाया गया है. अब बताइए मुझे ये काम करना चाहिए या नहीं?” शर्मीलाजी ने अपने पति से पूछा.

“नहीं, तुम ये काम अकेले नहीं कर सकती.” अवतार सिंह ने अपना फैसला सुना दिया. शर्मीलाजी यह सुनकर बुझ गईं. उनका बहुत मन था कि काम के बहाने माता वैष्णो देवी के दर्शन भी हो जाएंगे.

“टिकट लेने, होटल बुक करवाने के लिए तुम कहां अकेली-अकेली फिरोगी. मैं भी इस काम में तुम्हारी मदद करूंगा.” अवतार सिंह की बात सुनकर शर्मीलाजी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. काम में पति का साथ मिले, एक पत्नी के लिए इससे बढ़कर और क्या हो सकता है? अवतारजी ने सलाह दी कि काम बड़ा है और इसमें कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, इसलिए मदद के लिए वे अपने दो दोस्तों को भी साथ ले लेंगे.

नेकी और पूछ-पूछ शर्मिलाजी को इससे बढ़कर और क्या चाहिए था!

शर्मीला और अवतार सिंह ने अपने दो रिटायर्ड दोस्तों और उनकी पत्नियों के सहयोग से वैष्णो देवी की यात्रा का आयोजन सफलतापूर्वक कर दिया.

वहां से लौटकर आने के बाद उन्हें चार धाम की यात्रा का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया. अब इन सभी लोगों ने तय किया कि क्यों न वे इस काम को संगठित और व्यवस्थित रूप से करें और इसके लिए एक कंपनी बना ली जाए.

इस तरह सभी रिटायर्ड लोगों ने अपने जीवन के लिए एक नई राह बना ली है, जिस पर चलते हुए उन्हें लगता है कि अब बुढ़ापा बदरंग नहीं रहेगा. काम करते हुए बुढ़ापे को भी शान से जिया जा सकता है. ....
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