09/09/2022
1] श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय । कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥
जो निर्मल चन्द्रकला तथा सर्पोंद्वारा ही भूषित एवं शोभायमान हैं, गिरिराजकुमारी अपने मुखसे जिनके लोचनोंका चुम्बन करती हैं, कैलास एवं महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकीके दु:खको दूर करनेवाले हैं, उन शिवजीको नमस्कार करता हूँ । 🙏🙏2] 🍀विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।
नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ॥
जो विश्व के मूल कारण, कल्याणस्वरूप संसार की सृष्टि करनेवाले, सत्यरूप, सत्यपूर्ण तथा शुण्डधारी हैं, उन आप गणेश्वर को बारंबार नमस्कार है । 🙏🙏 3] शिवं शांतं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम् ।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः।।
जो परम शुभ है, जो शान्ति का धाम है, जो जगत् का स्वामी है, विश्व के कल्याण के लिए कार्य करता है। जो एक शाश्वत (अमर) शब्द है जिसे शिव के नाम से जाना जाता है ऐसे शिव को नमन जिनका वर्णन “शि” अक्षर से किया गया है।🙏🙏
4] श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय । कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥
जो निर्मल चन्द्रकला तथा सर्पोंद्वारा ही भूषित एवं शोभायमान हैं, गिरिराजकुमारी अपने मुखसे जिनके लोचनोंका चुम्बन करती हैं, कैलास एवं महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकीके दु:खको दूर करनेवाले हैं, उन शिवजीको नमस्कार करता हूँ । 🙏🙏5] 🍀यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम: शिवाय् ॥
जो शिव यक्ष के रूप को धारण करते हैं और लंबी–लंबी खूबसूरत जिनकी जटायें हैं, जिनके हाथ में ‘पिनाक’ धनुष है, जो सत् स्वरूप हैं अर्थात् सनातन हैं, दिव्यगुणसम्पन्न उज्जवलस्वरूप होते हुए भी जो दिगम्बर हैं; ऐसे उस यकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ। 🙏🙏 6] *आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः*
*प्राणाः शरीरं गृहम्।*
*पूजा ते विषयोपभोगरचना*
*निद्रा समाधिस्थितिः ।।*
*सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः*
*स्तोत्राणि सर्वा गिरो ।*
*यद्यद्कर्म करोमि तत्तदखिलं*
*शम्भो तवाराधनम् ।।*
*हे शंभो! तुम मेरी आत्मा हो । बुद्धि पार्वती हैं। प्राण आपके गण हैं । शरीर आपका मन्दिर है । सभी विषय भोगों की रचना आपकी पूजा है । निद्रा समाधि है । मेरा हलन चलन आपकी परिक्रमा है । मेरे सभी शब्द आपके स्तोत्र हैं । इस भाँति मेरी सभी क्रियाएँ आपकी आराधना रूप बनें।*
🙏🙏 7] महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम्।
महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः।।
कौन हैं महादेव, कौन हैं महात्मा, कौन हैं ध्यान का परम लक्ष्य। वह जो अपने भक्तों के सभी पापों (पाप कर्मों) का नाश करने वाला है। वह जो महान पापों का नाश करता है।
ऐसे शिव को नमन वे शब्दांश “म:” द्वारा वर्णित हैं।”🙏🙏 8] श्रीशैलशृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेऽपि मुदा वसन्तम्। तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥
ऊंचाई की तुलना में जो अन्य पर्वतों से ऊंचा है, जिसमें देवताओं का समागम होता रहता है, ऐसे श्रीशैलश्रृंग में जो प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं, और जो संसार सागर को पार करने के लिए सेतु के समान हैं, उन्हीं एकमात्र श्री मल्लिकार्जुन भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ। 🙏🙏9] अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्। अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥
जो भगवान् शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं नमस्कार करता हूँ । 🙏🙏 10] पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्। सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥
जो भगवान् शंकर पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि वैद्यनाथ धाम के अन्दर सदा ही पार्वती सहित विराजमान हैं, और देवता व दानव जिनके चरणकमलों की आराधना करते हैं, उन्हीं ‘श्री वैद्यनाथ’ नाम से विख्यात शिव को मैं प्रणाम करता हूँ । 🙏🙏 11] कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय। सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे् ॥
जो भगवान् शंकर सज्जनों को इस संसार सागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम में स्थित मान्धता नगरी में सदा निवास करते हैं, उन्हीं अद्वितीय ‘ओंकारेश्वर’ नाम से प्रसिद्ध श्री शिव की मैं स्तुति करता हूँ ।🙏🙏🙏 12] यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि।।
शाकिनी और डाकिनी समुदाय में प्रेतों के द्वारा सदैव सेवित होने वाले और भक्तहितकारी भीमशंकर नाम से प्रख्यात भगवान शंकर को मेरा नमस्कार।🙏🙏🙏 13] सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:। श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥
जो भगवान् शंकर सुन्दर ताम्रपर्णी नामक नदी व समुद्र के संगम में श्री रामचन्द्र जी के द्वारा अनेक बाणों से या वानरों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किये गये हैं, उन्हीं श्रीरामेश्वर नामक शिव को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ । 🙏🙏🙏 14] सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे। यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्रयम्बकमीशमीडे ॥
जो भगवान् शंकर गोदावरी नदी के पवित्र तट पर स्थित स्वच्छ सह्याद्रिपर्वत के शिखर पर निवास करते हैं, जिनके दर्शन से शीघ्र सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उन्हीं त्रयम्बकेश्वर भगवान् की मैं स्तुति करता हूँ । 🙏🙏 15] सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्। वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
जो भगवान् शंकर आनन्दवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं, जो परमानन्द के निधान एवं आदिकारण हैं, और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, ऐसे अनाथों के नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथ की मैं शरण में जाता हूँ ।🍁🙏🙏 16] महत: परित: प्रसर्पतस्तमसो दर्शनभेदिनो भिदे। दिननाथ इव स्वतेजसा हृदयव्योम्नि मनागुदेहि न:॥
जो भगवान् शंकर दक्षिण दिशा में स्थित अत्यन्त रमणीय सदंग नामक नगर में अनेक प्रकार के भोगों तथा नाना आभूषणों विभूषित हैं, जो एकमात्र सुन्दर पराभक्ति तथा मुक्ति को प्रदान करते है, उन्हीं अद्वितीय श्री नागनाथ नामक शिव की मैं शरण में जाता हूँ ।🙏🙏🙏 17] पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
जो कोई भी भगवान शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नियमित रूप से उनके सामने पाठ करता है, वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है और शिव के साथ सुखपूर्वक निवास करता है।🙏🙏🙏 18] *अतः सत्यं यतो धर्मो मतो हीरार्जवं यतः।*
*ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः।।*
Where truth, righteousness, shame and simplicity reside. Where Shri Krishna resides and where Shri Krishna resides,There resides victory
जहां सत्य, धर्म, लज्जा और सरलता का वास है
वहां श्रीकृष्ण निवास करते हैं और जहां श्रीकृष्ण निवास करते हैं,
वहां विजय का वास होता है।🙏🙏 19] श्वेतदेहाय रुद्राय श्वेतगंगाधराय च।
श्वेतभस्माङ्गरागाय श्वेतस्वरूपिणे नमः।।
श्वेत देह वाले, श्वेत गंगा को मस्तक पर धारण करने वाले, श्वेत भस्म को शरीर पर धारण करने वाले, श्वेत स्वरूप भगवान् शिव को नमन करता हूँ ।।🙏🙏 20] कनकमहामणिभूषितलिंगम् फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम्। दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग सुवर्ण व महामणियों से भूषित है, जो नागराज वासुकि से वेष्टित है, और जिसने दक्षप्रजापति के यज्ञ का नाश किया है।🙏🙏🙏 21] अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम् सर्वसमुद्भवकारणलिंगम्। अष्टदरिद्रविनाशितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग अष्टदल कमल के ऊपर विराजमान है, और जो सम्पूर्ण जीव–जगत् के उत्पत्ति का कारण है, तथा जिस लिंग की अर्चना से अणिमा महिमा आदि के अभाव में होने वाला आठ प्रकार का जो दारिद्र्य है, वह भी नष्ट हो जाता है। 🙏🙏🙏 22] देवगणार्चितसेवितलिंगम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्। दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवगणों से पूजित तथा भावना और भक्ति से सेवित है, और जिस लिंग की प्रभा–कान्ति या चमक करोड़ों सूर्यों की तरह है। 🙏🙏 23] कुंकुमचन्दनलेपितलिंगम् पंकजहारसुशोभितलिंगम्। संचितपापविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग केशरयुक्त चन्दन से लिप्त है और कमल के पुष्पों के हार से सुशोभित है, जिस लिंग के अर्चन व भजन से पूर्वजन्म या जन्म-जन्मान्तरों के सञ्चित अर्थात् एकत्रित हुए पापकर्म नष्ट हो जाते हैं, अथवा समुदाय रूप में उपस्थित हुए जो आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक त्रिविध ताप हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। 🙏🙏🙏 24] शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः ।
ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने ॥
नंदी और सुरभि कामधेनु भी आपके ही प्रतिरूप हैं । पृथ्वीको धारण करनेवाले हे शर्वदेव ! आपको नमस्कार है । हे वायुरुपधारी, वसुरुपधारी आपको नमस्कार है । 🙏🙏 25] हरिस्ते सहस्रं कमल बलिमाधाय पदयोः
यदेकोने तस्मिन् निजमुदहरन्नेत्रकमलम्।
गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषः
त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर जागर्ति जगताम्।।
जब भगवान विष्णु ने आपकी( महादेवकी )सहस्र कमलों एवं सहस्र नामों द्वारा पूजा प्रारम्भ की तो उन्होंने एक कमल कम पाया। तब भक्ति भाव से हरिने अपनी एक आंख को कमल के स्थान पर अर्पित कर दिया। उनकी यही अदम्य भक्ति ने सुदर्शन चक्र का स्वरूप धारण कर लिया जिसे भगवान विष्णु संसार रक्षार्थ उपयोग करते हैं।🙏🙏 26] श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय । कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥
जो निर्मल चन्द्रकला तथा सर्पोंद्वारा ही भूषित एवं शोभायमान हैं, गिरिराजकुमारी अपने मुखसे जिनके लोचनोंका चुम्बन करती हैं, कैलास एवं महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकीके दु:खको दूर करनेवाले हैं, उन शिवजीको नमस्कार करता हूँ । 🙏🙏27] 🍀सकुले योजयेत्कन्या पुत्रं विद्यासु योजयेत्।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ॥
कन्या का विवाह किसी अच्छे घर में करना चाहिए, पुत्र को पढ़ाई-लिखाई में लगा देना चाहिए, मित्र को अच्छे कार्यो में तथा शत्रु को बुराइयों में लगा देना चाहिए । यही व्यवहारिकता है और समय की मांग भी । 🙏🙏 28] *ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।*
*भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।*
संसार में प्रेम के ये छह लक्षण होते हैं - लेना, देना, खाना, खिलाना, अपने जीवन के रहस्य बताना और उन्हें सुनना ।🙏🙏🌹 29] विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।
नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ॥
जो विश्व के मूल कारण, कल्याणस्वरूप संसार की सृष्टि करनेवाले, सत्यरूप, सत्यपूर्ण तथा शुण्डधारी हैं, उन आप गणेश्वर को बारंबार नमस्कार है । 🙏🙏