14/09/2021
राधा अष्टमी..14-09-2021
श्री राधा जी" की जन्म कथा
आज से पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट "रावल गांव" में वृषभानु एवं कीर्ति देवी की पुत्री के रूप में
राधा रानी ने जन्म लिया था।
राधा रानी के जन्म के संबंध में यह
कहा जाता है कि राधा जी माता के पेट से पैदा नहीं हुई थी, उनकी माता ने अपने गंर्भ में "वायु" को धारण कर रखा था। उसने योग माया कि प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहाँ स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गई।
श्री राधा रानी जी कलिंदजाकूलवर्ती
निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में
अवतीर्ण हुई। उस समय भाद्र पद
का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल १२ बजे और सोमवार
का दिन था।
उस समय राधा जी के जन्म पर
नदियों का जल पवित्र हो गया। सम्पूर्ण दिशाए प्रसन्न निर्मल हो उठी।
वृषभानु और कीर्ति देवी ने पुत्री के कल्याण की कामना से आनंददायिनी दो लाख उत्तम
गौए ब्राह्मणों को दान में दी।
ऐसा भी कहा जाता है कि एक दिन जब वृषभानु जी जब एक सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक बालिका "कमल के फूल" पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने पुत्री के
रूप में अपना लिया।
श्री राधा रानी जी आयु में श्री कृष्ण जी से ग्यारह माह बडी थीं।
लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल
गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आँखे नहीं खोली है। इस बात से उन्हें बड़ा दुःख हुआ।
कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल
से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और
कीर्ति जी उनका स्वागत करती है। यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए
राधा जी के पास आती है और जैसे
ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है तब राधा जी पहली बार अपनी आँखे खोलती हैं।
अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए वे एक टक कृष्ण जी को देखती है। अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर श्री कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है।
जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओ के लिए भी दुर्लभ है। तत्वज्ञ मनुष्य
सैकड़ो जन्मो तक तप करने पर
भी जिनकी झाँकी नहीं पाते, वे
ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के
यहाँ साकार रूप से प्रकट हुई और गोप ललनाएँ जब उनका पालन करने लगी, स्वर्ण जडित और सुन्दर रत्नों से रचित चंदनचर्चित पालने में
सखीजनो द्वारा नित्य झुलाई जाती हुई श्री राधा प्रतिदिन शुक्ल पक्ष के
चंद्रमा की कला की भांति बढ़ने लगी।
श्री राधा क्या है - रास की रंग
स्थली को प्रकाशित करने
वाली चन्द्रिका, वृषभानु मंदिर
की दीपावली, गोलोक चूड़ामणि, श्री कृष्ण की हारावली है।
हमारा उन परम शक्ति को सत्-सत् नमन है।
जय जय श्री राधे ...
राधा अष्टमी..14-09-2021
श्री राधा जी" की जन्म कथा
आज से पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट "रावल गांव" में वृषभानु एवं कीर्ति देवी की पुत्री के रूप में
राधा रानी ने जन्म लिया था।
राधा रानी के जन्म के संबंध में यह
कहा जाता है कि राधा जी माता के पेट से पैदा नहीं हुई थी, उनकी माता ने अपने गंर्भ में "वायु" को धारण कर रखा था। उसने योग माया कि प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहाँ स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गई।
श्री राधा रानी जी कलिंदजाकूलवर्ती
निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में
अवतीर्ण हुई। उस समय भाद्र पद
का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल १२ बजे और सोमवार
का दिन था।
उस समय राधा जी के जन्म पर
नदियों का जल पवित्र हो गया। सम्पूर्ण दिशाए प्रसन्न निर्मल हो उठी।
वृषभानु और कीर्ति देवी ने पुत्री के कल्याण की कामना से आनंददायिनी दो लाख उत्तम
गौए ब्राह्मणों को दान में दी।
ऐसा भी कहा जाता है कि एक दिन जब वृषभानु जी जब एक सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक बालिका "कमल के फूल" पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने पुत्री के
रूप में अपना लिया।
श्री राधा रानी जी आयु में श्री कृष्ण जी से ग्यारह माह बडी थीं।
लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल
गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आँखे नहीं खोली है। इस बात से उन्हें बड़ा दुःख हुआ।
कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल
से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और
कीर्ति जी उनका स्वागत करती है। यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए
राधा जी के पास आती है और जैसे
ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है तब राधा जी पहली बार अपनी आँखे खोलती हैं।
अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए वे एक टक कृष्ण जी को देखती है। अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर श्री कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है।
जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओ के लिए भी दुर्लभ है। तत्वज्ञ मनुष्य
सैकड़ो जन्मो तक तप करने पर
भी जिनकी झाँकी नहीं पाते, वे
ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के
यहाँ साकार रूप से प्रकट हुई और गोप ललनाएँ जब उनका पालन करने लगी, स्वर्ण जडित और सुन्दर रत्नों से रचित चंदनचर्चित पालने में
सखीजनो द्वारा नित्य झुलाई जाती हुई श्री राधा प्रतिदिन शुक्ल पक्ष के
चंद्रमा की कला की भांति बढ़ने लगी।
श्री राधा क्या है - रास की रंग
स्थली को प्रकाशित करने
वाली चन्द्रिका, वृषभानु मंदिर
की दीपावली, गोलोक चूड़ामणि, श्री कृष्ण की हारावली है।
हमारा उन परम शक्ति को सत्-सत् नमन है।
जय जय श्री राधे ❤❤❤❤🎶🎶🎶🙏🙏🙏
Radha Ashtami..14-09-2021
Birth story of "Shri Radha ji"
Five thousand two hundred years ago in the form of daughter of Vrishabhanu and Kirti Devi in "Raval village" near Gokul-Mahavan town of Mathura district.
Radha Rani was born.
In connection with the birth of Radha Rani
It is said that Radha ji was not born from mother's womb, her mother kept "Vayu" in her womb. He gave birth to Vayu with the inspiration of Yoga Maya. But there voluntarily Shri Radha appeared.
Shri Radha Rani Ji Kalindajakulvarthy
In a beautiful temple of Nikunj region
Incarnated. Bhadra post at that time
The month was, the Ashtami date of Shukla Paksha, Anuradha Nakshatra, 12 noon and Monday
It was day
At that time on the birth of Radha ji
The water of the rivers became holy. All the directions became happy and clean.
Vrishabhanu and Kirti Devi wished for the welfare of the daughter, Anandadayini two lakhs best
Donated cows to Brahmins.
It is also said that one day when Vrishabhanu ji was passing by a lake, he found a girl floating on a "lotus flower", which he took as a daughter.
adopted as
Shri Radha Rani ji was eleven months older than Shri Krishna ji.
But Shri Vrishabhanu ji and Kirti Devi soon came to know about this.
It is known that Shri Kishori ji has not opened his eyes since his appearance. He was deeply saddened by this.
After some time when Yashoda ji Gokul, wife of Nanda Maharaj
When she comes to Vrishabhanu ji's house with her beloved, then Vrishabhanu ji and
Kirti ji welcomes them. Yashoda ji took Kanha in her arms
Radha comes to ji and like
It is only when Shri Krishna and Radha come face to face, Radha ji opens her eyes for the first time.
To see her dear life Shri Krishna, she looks at Krishna ji one tuck. Seeing his beloved in front of him in the form of a beautiful girl, Shri Krishna himself becomes very happy.
Whose vision is rare even for big gods. philosopher
After doing penance for hundreds of births
Even those who can't see, they
It was Shri Radhika ji when Vrishabhanu
Appeared here in a corporeal form and when the cowherds began to follow them, in a sandalwood cradle made of gold studded and beautiful gems
Shri Radha is constantly being swung by friends on the day of Shukla Paksha.
Like the phase of the moon began to grow.
What is Shri Radha - Raas Ki Rang
publish the site
Wali Chandrika, Vrishabhanu Temple
It is Diwali, Goloka Chudamani, Harawali of Shri Krishna.
We salute that supreme power.
Jai Jai Shree Radhe ...