कवि पथ "path of poets"

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कवि पथ "path of poets" If you are a poet or like poem then please like kavi path

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले ।मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले ।आए बनकर उल्लास कभी, आंसू बन...
07/06/2024

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले ।
मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले ।
आए बनकर उल्लास कभी, आंसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले ।

किस ओर चले? मत ये पूछो, बस, चलना है इसलिए चले
जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए
चले।
दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हंसे और फिर कुछ रोए
छक कर सुख-दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले ।

हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले
हम एक निशानी उर पर, ले असफलता का भार चले ।
हम मान रहित, अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुके
हम हँसते हँसते आज यहाँ, प्राणों की बाजी हार चले ।

हम भला-बुरा सब भूल चुके, नतमस्तक हो मुख मोड़ चले
अभिशाप उठाकर होठों पर, वरदान दृगों से छोड़ चले ।
अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले
हम स्वयं बधे थे और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले ।

कवि भगवती चरण वर्मा

Presented by -----
कवि पथ - the path of poet

Photo and Discription by----
Wikipedia

*जीवन के गीत*हैं कई गीत जिनको सुनाया गया,हैं कई गीत जिनको ना गाया गया,हैं कई गीत जो हैं अधूरे अभी,हैं कई गीत जिनको छुपाय...
02/06/2024

*जीवन के गीत*

हैं कई गीत जिनको सुनाया गया,
हैं कई गीत जिनको ना गाया गया,
हैं कई गीत जो हैं अधूरे अभी,
हैं कई गीत जिनको छुपाया गया।

हैं कई गीत जिनको बसाया गया
हैं कई गीत जिनको भुलाया गया,
हैं कई गीत जिनको रो कर लिखे,
हैं कई गीत जिनको जलाया गया।

हैं कई गीत जिनको तपाया गया,
हैं कई गीत जिनको खपाया गया,
हैं कई गीत जिनकी इमारत बनी,
हैं कई गीत जिनको ढहाया गया।

हैं कई गीत जिनको कमाया गया,
हैं कई गीत जिनको लुटाया गया,
हैं कई गीत जिनके लिए हम जिए,
हैं कई गीत जिनको सजाया गया।

डॉ दीपेंद्र पाण्डेय "उजाला"
भोपाल

23/02/2024

उसके दिल में ज्यादा गम है,
लेकिन आंखो में आंसू कम है।

सीख लिया उसने गम पीना,
सीख लिया दुनिया में जीना।।

जब अपनों ने किया किनारा,
बेशक वो अपनो से हारा।

ना उसके जख्मों में मरहम है,
फिर भी मस्ती में हरदम है।।

उसके दिल में ज्यादा गम है,
लेकिन आंखो में आंसू कम है।।

डॉ दीपेंद्र "उजाला"
भोपाल
23.02.24

विश्व संस्कृति दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
31/08/2023

विश्व संस्कृति दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं 💐
30/08/2023

आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं 💐

17/08/2023
आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 💐
15/08/2023

आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 💐

*🪷🪷🪷एक गीत सादर🪷🪷🪷*मोड़कर पापी हृदय को, शुद्ध होना चाहता हूं।छोड़कर सब मोह माया, बुद्ध होना चाहता हूं।।क्या रखा संसार मे...
06/05/2023

*🪷🪷🪷एक गीत सादर🪷🪷🪷*

मोड़कर पापी हृदय को, शुद्ध होना चाहता हूं।
छोड़कर सब मोह माया, बुद्ध होना चाहता हूं।।

क्या रखा संसार में इस, जिंदगी टिकती नहीं,
जोड़ले कितना यहां भी, तिश्नगी मिटती नहीं,
आदमी औकात कितनी, चंद साँसों का सफर,
कामनाओं का महल है, उम्र छोटी सी मगर।

गलतियों पर आज अपनी, क्रुद्ध होना चाहता हूं।
छोड़कर सब मोह माया, बुद्ध होना चाहता हूं।।

रिश्ते नाते स्वार्थ के सब, साथ कुछ देते नहीं,
कर्म बांधे आपने जो, बांट वो लेते नहीं,
क्या किया गर सोंचता हूं, क्या मिला क्या ना मिला,
रोक सकता है न कोई, भव भ्रमण का सिलसिला।

आतमा में डूबकर के, मुग्ध होना चाहता हूं।
छोड़कर सब मोह माया, बुद्ध होना चाहता हूं।।

सादर
🪷🪷🪷
कवि अभिषेक जैन 'अबोध'
भोपाल

इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ;मत बुझाओ!जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!पाँव तो मेरे थकन ने छील डालेअब विचारों के सहारे ...
18/06/2022

इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ;
मत बुझाओ!
जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!

पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ,
आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को
एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ,
मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है
मत मिटाओ!
पाँव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी!

बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं
इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से
प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ
मत बुझाओ!
जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!

जी रहे हो किस कला का नाम लेकर
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है,
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है,
मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ
मत सुखाओ!
मैं खिलूँगा, तब नई बगिया खिलेगी!

शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझुँगा,
ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर
जब मरूँगा देवता बनकर पुजुँगा,
आँसूओं को देखकर मेरी हंसी तुम
मत उड़ाओ!
मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी!

कवि रामवतार त्यागी

03/11/2021

ख़ाली जेब का दर्द, लबालब भरी तिजोरी क्या जाने
पावन सुख कर्तव्य-कर्म का, रिश्वतख़ोरी क्या जाने।

जिसको पैदा करके छोड़ा, मरने-जीने सडक़ों पर
वो बदक़िस्मत बच्चा आख़िर ,माँ की लोरी क्या जाने।

क्या गरिमा शब्दों की होती, संजीदा अभिव्यक्ति क्या
गहराई श्लोक-ऋचा की, कहन छिछोरी क्या जाने।

स्वाभिमान जिसको प्यारा है,खुद पर है विश्वास जिसे
कर्मयोग का साधक विनती और चिरोरी क्या जाने।

कितनी मुश्किल भरी ज़िन्दगी, कस्बे-गाँव की बेटी की
सुविधाभोगी बड़े शहर की अल्हड़ छोरी क्या जाने।

कंप्यूटर, मोबाइल पर जो गेम खेलता आभासी
वो बच्चा गिल्ली-डंडा और चकरा-भोरी क्या जाने।

दिनेश मालवीय "अश्क"
भोपाल

"क्रोध"उठ रहा जो  ज्वार  मन में  क्या शांत हो सकता नहीं? विचार करके बोलने से क्या परिणाम टल सकता नहीं? तो भला  मन   में ...
12/10/2021

"क्रोध"

उठ रहा जो ज्वार मन में क्या शांत हो सकता नहीं?
विचार करके बोलने से क्या परिणाम टल सकता नहीं?

तो भला मन में अकारथ उन्माद क्यों पाले हो तुम?
जब तुम्हारे क्रोध से कोई हल निकल सकता नहीं।

ज्ञान हो जाये तुम्हें यदि क्रोध के परिणाम का,
वाणी से न कर्म से फिर वार हो सकता नहीं।

हो समय कितना विषम विकट और विकराल किंतु,
जो सीख ले मन जीतना तो धैर्य खो सकता नहीं।

गर बोध हो जाये हमे की बुद्ध हैं भीतर हमारे,
तो भूल से भी 'उजाला' क्रोध आ सकता नहीं।

डॉ दीपेन्द्र पाण्डेय "उजाला "
भोपाल

12/06/2021

डगमगा रहा है देश मगर
निर्माण तुम्हे करना होगा
कठिन, मगर ये "कवि पथ" है
जिसमें तुमको चलना होगा

गीतआँधियां   तुम  बुलाते  रहो  उम्र  भर ,हम बने मुश्किलों के नमन के लिएलाख हमको बुझाने की कोशिश करो,हम दिए हैं जलेंगे  व...
09/05/2021

गीत

आँधियां तुम बुलाते रहो उम्र भर ,
हम बने मुश्किलों के नमन के लिए
लाख हमको बुझाने की कोशिश करो,
हम दिए हैं जलेंगे वतन के लिए

घर में देखो जिधर रोशनी रोशनी
पर अंधेरा दिलों का मिटाया नहीं
घर के नौकर को अपना तो माना मगर
साथ बैठा के उसको खिलाया नहीं
तुम कलुष भाव लेकर जियो जिंदगी ,
हम तो पूजा में बैठे हवन के लिए
लाख हमको......

लाख अच्छाई खुद की गिनाओ मगर
इक बुराई के आगे टिकोगे नहीं
झूठ कितना भी बोलो,वो सच तो नही
कैसे माने की कल तुम बिकोगे नहीं
तुम जुआ खेल कर यूँ तरक्की करो,
हम पुजारी हैं केवल भजन के लिए
लाख हमको......

दीप उत्सव मना कर भी क्या कर लिया
जबकि घर के बड़े खुश हुए ही नहीं
लाख वंदन किया देवता का मगर
पाँव माँ बाप के तो छुए ही नहीं
तुम लिखो गीत दशरथ पे कितने मगर,
छंद मैं तो लिखूंगा श्रवण के लिए
लाख हमको......

कवि दिनकर पाठक
भोपाल

ओ महावीर के अनुयायी, तुम चरण नहीं, आचरण छुओया तो आतम पर शोध करो या महावीर का बोध करो करुणा के दीपक धरे नहीं, जीवन भर मन ...
25/04/2021

ओ महावीर के अनुयायी,
तुम चरण नहीं, आचरण छुओ
या तो आतम पर शोध करो या महावीर का बोध करो

करुणा के दीपक धरे नहीं, जीवन भर मन के द्वारे पर
जो करना था वो किया नहीं बस उछल पड़े जयकारे पर
क्या कभी चेतना कोे धोया हमने चरित्र के पानी से
सच बोलो, कितना सीखे हैं हम महावीर की वाणी से

नापो आतम की गहराई
अंतस का तारण तरण छुओ
जीवन विवेक से जियो, बुराई जो भी है अवरोध करो
या तो आतम पर शोध करो या महावीर का बोध करो

क्या ऐसे कर्म किये हमने जो महावीर से मिलते हों
अथवा दुःख देख किसी का भी दो फूल दया के खिलते हों
या कभी किसी गीले नयनों को हमने ज़रा टटोला हो
या वसुंधरा का हर प्राणी अपना है, ऐसा बोला हो

केवल भाषाओं के ज्ञानी
मन का थोड़ा व्याकरण छुओ
हर जीव सुखद अनुभूति करे, ईश्वर से ये अनुरोध करो
या तो आतम पर शोध करो या महावीर का बोध करो

डॉ अंशुल जैन
गीतकार भोपाल

********** एक ग़ज़ल **********                 ~~~~~~~~कई  गहरे  समन्दर  तैर  कर  इस  पार  आया  हूँ।लगाकर जिन्दगी का दाव...
12/03/2021

********** एक ग़ज़ल **********
~~~~~~~~
कई गहरे समन्दर तैर कर इस पार आया हूँ।
लगाकर जिन्दगी का दाव सबकुछ हार आया हूँ।।
*
कभी मैंने किसी भी हाल में कुछ भी नहीं माँगा,
ज़माने भर से ठुकराया हुआ लाचार आया हूँ।।
*
मुझे उम्मीद थी नज़रे इनायत आपकी होगी,
कहूँ कैसे तुम्हारे दर हजारों बार आया हूँ।।
*
चले आओ चलो हम तुम क्षितिज के पार चलते हैं,
सुनो इस बार सचमुच छोड़ कर घरबार आया हूँ।।
*
चलन ऐसा हमेशा डूबती कस्ती किनारे पर,
हुआ अफ़सोस क्यों में काट कर मझधार आया हूँ।।
*
पंख ऊँची उड़ानों के लगें जब भी थके माँदे,
दरख्तों पर बसेरों का लिए अधिकार आया हूँ।।

साहित्यकार
ऋषि श्रृंगारी ,भोपाल ( मध्यप्रदेश)
संपर्क सूत्र:7987562207

भैया  गिफ्ट  मुझे  राखी  पर  महँगी  वाली  मत  देनाशादी मे झिलमिल चूनर, पायल और  बाली मत देनाएक  वचन   तुमसे  लेती हूँ, ज...
23/02/2021

भैया गिफ्ट मुझे राखी पर महँगी वाली मत देना
शादी मे झिलमिल चूनर, पायल और बाली मत देना
एक वचन तुमसे लेती हूँ, जिसे निभाना जीवन भर
कभी किसी को आप बहन और माँ की गाली मत देना।

दिनेश मालवीय "अश्क"
भोपाल

कंधों पर हल रखने वालों,उठो नया कुछ हल ढूंढो।दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।स्वेद कणों से सींच के तुमने,हरित  ...
07/02/2021

कंधों पर हल रखने वालों,उठो नया कुछ हल ढूंढो।
दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।

स्वेद कणों से सींच के तुमने,
हरित क्रांति फैलाई है,
आज बताओ कैसी आँधी,
तुमसे आ टकराई है,
शांति दूत बन जाओ फिर से,वही पुराना पल ढूंढो।
दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।

शीत धूप सब झेल के भाई,
मिट्टी सोना करते हो,
भारत के हो भाग्य विधाता,
पेट सभी का भरते हो,
प्यासे की जो प्यास बुझादे,उसी कूप का जलढूंढो।
दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।

कंधों पर बंदूक तुम्हारे,
रखकर कौन दहाड़ रहा,
भारत मां का पावन आंचल,
आज कौन है फाड़ रहा,
दलदल में मत डूबो प्यारे,पुनः नया तुम दल ढूंढो।

दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।

रचना- लालबहादुर चौरसिया "लाल"
आजमगढ़ (यू पी )

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