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18/09/2024

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जाग्रति इवेंट्स presents.......
06/03/2024

जाग्रति इवेंट्स presents.......

Hasya kavi sammelan ! Hema pandey ! खतरनाक नोक झोंकhasya kavi sammelan। Hema pandey।।कवि सम्मेलन का प्रसारण हमारे JAGRATI EVENTS के youtube channal पर करवाने...

02/03/2024 आगरा में।।
23/02/2024

02/03/2024 आगरा में।।

22/02/2024

कवि सम्मेलन promo विडिओ।

21/02/2024

जबतक देश का जिंदा स्वाभिमान रहेगा।
तह तक यह मेरा भारत देश महान रहेगा।







आइये दोस्तों एक बार फिर स्वगात है।।
20/02/2024

आइये दोस्तों एक बार फिर स्वगात है।।

आइये दोस्तो 15/2/2024 दिन गुरुवार को युवा कवि देश दीपक शर्मा के संयोजन में युथ हॉस्टल संजय पैलेस आगरा में।।   इंतज़ार रहे...
11/02/2024

आइये दोस्तो 15/2/2024 दिन गुरुवार को युवा कवि देश दीपक शर्मा के संयोजन में युथ हॉस्टल संजय पैलेस आगरा में।।
इंतज़ार रहेगा आपका।।

तीर ऐसे चलाए थे रति कंत ने।पीर ऐसी कि काटा ज्यों विषदंत ने।कैसी अनजानी राहों में जाकर डसा।प्रीति के पंथ को मृत्यु के अंत...
19/05/2023

तीर ऐसे चलाए थे रति कंत ने।
पीर ऐसी कि काटा ज्यों विषदंत ने।
कैसी अनजानी राहों में जाकर डसा।
प्रीति के पंथ को मृत्यु के अंत ने।
दीपक शर्मा दिव्यांशु

नमस्कार दोस्तो।।
तीर ऐसे चलाए थे रति कंत ने।
पीर ऐसी कि काटा ज्यों विषदंत ने।
कैसी अनजानी राहों में जाकर डसा।
प्रीति के पंथ को मृत्यु के अंत ने।
दीपक शर्मा दिव्यांशु

गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्ट (कुंडोल) तथा जागृति इवेंट्स के संयुक्त तत्वावधान में होंगे आगरा व आगरा के आसपास के क्षेत्...
08/05/2023

गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्ट (कुंडोल) तथा जागृति इवेंट्स के संयुक्त तत्वावधान में होंगे आगरा व आगरा के आसपास के क्षेत्र में अगले छः महीनों में 50 अखिल भारतीय जन चेतना सम्मेलन( कवि सम्मेलन)।

आज पुस्पानुज नर्सिंगहोम के निदेशक डॉ. अनुज जैन जी से उपरोक्त विषय पर सुखद मुलाकात के साथ साथ विस्तृत चर्चा हुई।
दीपक शर्मा दिव्यांशु
9149045652

08/05/2023

एक बार जरूर पढ़ें अपना इतिहास।
*भारत और चीन का युद्ध*
*{1962}*

भारती के चीर पर जब भी नजर गंदी पड़ी।
हुक्मरानी हस्तियों की आंख जब उस पर गढ़ी।
तो ढाल बनकर मात की संगीन लेकर निज करों में।
जिंदगी का दान देकर जंग हमने है लड़ी।

है नमन पहला प्रसूता सिंघनी के त्याग को।
दूजा नमन उसके हृदय में धधकती उस आग को।
तीजा नमन उस गांव को जिसने दिया बलिदान था।
चौथा नमन उस बाप को जो कर्म से मतिमान था।
पंचम नमन उस रात को जो थी गवाह उस युद्ध की।
छटवां नमन उस देव को जिसने हवा जो सुद्ध की।
सप्तम नमन उस रक्त से लिखे हुए इतिहास को।
अन्तिम नमन उस तरुण की तरुणाईं के विश्वास को।
में सुनाऊं इक कथानक इस जमीं के प्यार का।
द्वंध भावों से भरा है इस धरा के ज्वार का।
मै सुनाऊं वीरता उस पतित पावन रक्त की।
जिंदगी और मृत्यु के संबेदना के वक्त की।
में सुनाऊं साधना एक त्याग के उत्कर्ष की।
जो कि बासठ में हुई उस जंग के निष्कर्ष की।
हम हुए आजाद अपना राज कायम कर रहे थे।
आर्थिक गहराइयों की खाइयों को भर रहे थे।
एकता का भाव लेकर न्याय पथ पर चल रहे थे।
पर पड़ोसी देश हमको देखकरके जल रहे थे।
चाइना की दृष्टि केंद्रित थी हमारे देश पर।
चाहता अपनी फतह वो हिंद के परिवेश पर।
योजना उसने बनाई विष भरे उन्माद की।
योजना उसने बनाई जंगली संवाद की।
योजना उसने बनाई आसुरी आयाम की।
योजना उसने बनाई शंभु से संग्राम की।
पर सुनो वो चीन का शासक बड़ा नादान था।
हिंद वीरों की धरा उसको इसका ज्ञान था।
वक्त को करवट बदलने में लगी कब देर है।
हो भले जख्मी बदन से शेर फिर भी
शेर है।
चीन को उस वक्त हमने था सबक ये ही सिखाया।
राम की पावन धरा का पाठ था उसको पढ़ाया।
किंतु सिंहासन हमारा फैसला ना ले सका।
और खुलके सैनिकों को हौसला ना दे सका।
एक इसे वीर की तुमको सुनाता हूं कहानी।
विश्व को जो दे गया था शौर्य की नूतन निशानी।
पैदा हुआ था जो धरा का दुःख हरने के लिए।
दुश्मनों ने जी दिए वो घाव भरने के लिए।
शौर्य का पर्याय था और सिंघनी का पूत था।
वीरता का था धनी मानो पवन का दूत था।
नाम था जसवंत उसका काल का अवतार था।
रक्त की उसकी धमनियों में मारता हुंकार था।
चीन ने विस बेल बोदी थी हमारे वास्ते।
अब हमारे पास थे बस गोलियों के रास्ते।
चीन के लाखों सिपाही और हम बस कुछ हजारी।
पर हमारे साथ में थी हर घड़ी हिम्मत हमारी।
चीन के आकाओं ने फिर हुक्म ऐसा दे दिया।
तुम मिटा दो हिंद को हमने यही निर्णय लिया।
जोश में चीनी चतुर भी होश को खोने लगे।
बीज अपनी मौत के वे स्वयं ही बोने लगे।
आड़ लेकर दुष्ट छिपकर बार करने लग गए।
देख अपने वीर भी हुंकार भरने लग गए।
वीर अपने देश की दीवानगी में खो गए।
जां हथेली पर रखी लड़ने को तत्पर हो गए।
आधुनिकता से गढ़े सब लड़ रहे हथियार थे।
किंतु अपने बांकुरे बेखौफ थे खुद्दार थे।
वे पुराने आयुधों से ही समर करने लगे।
वीर दोनों ही तरफ से अनगिनत मरने लगे।
युद्ध का मैदान भी इस बैग को सहता रहा।
सैनिकों का खून पानी की तरह बहता रहा।
दिन निकलते ही संदेशा वापसी का आ गया।
ये सुना यशवंत ने तो सुन के सिर चकरा गया।
सोचने मन में लगा वापस नहीं अब जाऊंगा।
चीनियों को मारकर ही चैन में ले पाऊंगा।
चीख कर बोला सुनो श्रीमान लड़ना ही पड़ेगा।
फिर दोबारा विषधरों के फन पे चढ़ना ही पड़ेगा।
देश के सच्चे सिपाही मौत से डरते नहीं।
राज करते हैं दिलों में वे कभी मरते नहीं।
ये शकल ब्रह्मांड उनके शौर्य का कायल रहेगा।
शर्त ये है रक्त उनके वंशजों का भी बहेगा। रक्त दे असमत बचाए वक्त पर जिनको पुकारा।
है नमन इस देश के उन सुर वीरों को हमारा।
कर्म का करना कठिन कहना बहुत आसान है।
कायरों की विश्व में केवल यही पहचान है।
कर्म जिनके नेक हैं और कल्पना गंभीर है।
वो नहीं कायर कभी वीरों में उत्तम वीर है।
आपके आदेश का पालन हमारा धर्म है।
किंतु इस भू को बचाना भी हमारा कर्म है।
भूलिए मत आप अंतस में छिपी उस आग को।
भूलिए मत आप उन रानवांकुरों के त्याग को।

भूलिए मत आप अपने जीत के विश्वास को।
भूलिए मत आप इस रक्तिम मई इतिहास को।
भूलिए मत आप माता भारती की पीर को।
भूलिए मत आप अपने युद्ध की शमशीर को।
भूलिए मत आप अपने वंश की पुण्यआत्माएं।
भूलिए मत आप उनके रक्त से भीगी कथाएं।
जिंदगी और मृत्यु में है फर्क ये जाना नहीं था।
है अहिंसा देश हित में पर इसे माना नहीं था।
और के वल पर कहां हम तो लड़े अपने भरोसे।
काटकर अरिमुंड गिद्धों को सदा हमने परोसे।

है कथन ये असत्य काटे विश्व में हीरे को हीरा।
भारती के बांकुरो ने सिंह के जबड़े को चीरा।
पैर पापी जब सिकंदर के यहां तक आ गए थे।
भारती के भाल पर तब मेघ काले छा गए थे।
आग सा ले ताप उनका रक्त तब सम्मुख खड़ा था।
और सिकंदर को यहां से हार कर जाना पड़ा था।
है अटल निर्णय मेरा वापस नहीं जाऊंगा मैं।
मृत्यु के चूंमूं चरण और वीरगति पाऊंगा में।
जब तलक सुन लो सभी मेरे बदन में जां रहेगी।
आत्मा मेरी मुझे बस युद्ध करने को कहेगी।
यह मेरा वादा मैं उनको इस तरफ आने ना दूंगा।
आ गए गलती से तो जिंदा उन्हें जाने ना दूंगा।
प्राण की परवाह क्या है जब उतरना जंग में।
हाथ में पिस्टल उठा कर आओ मेरे संग में।
हम करेंगे युद्ध तुम जाओ सभी से कह गए।
साथ में यशवंत के गोपाल नेगी रह गए।
और दो वीरांगना जो सैनिकों से दूर थी।
प्रेम की थीं वो पूजारन और सच्ची शूर थीं।
छिड़ गया फिर से समर सरहद पै पांचों डेट गए।
जो निराशाओं के बादल थे अचानक छठ गए।
शोर चारों और बस जय हिंद के नारों का था।
और जय मां भारती के मात्र के जायकारों का था।
देखता जिस औरअरिदल उस तरफ गोलियां।
गूंजती आकाश में बस इंकलाबी बोलियां।
हर तरफ छाया कुहासा मृत्यु के आगोश का।
काल भी कायल हुआ था तब हमारे जोश का।
यूं लगा ज्यों चीरता नाखून हो शमशीर को।
हैरान थी चीनी हुकूमत देख इस तासीर को।
फिर अचानक गोलीयां द्रुत बैग से आने लगीं।
और अपने सैनिकों के वक्ष में जाने लगीं।
गोपाल नेगी और सैला नींद सुख की सो गए।
इन सभी के गोलियों से जिस्म छलनी हो गए।
ढह चुकी थी हर इमारत एक नूरा साथ थी।
जसवंत संग दुश्मन को नूरा दे रही शयमत थी।
भारती मां का भरोसा अब इन्ही दोनो पै था।
और इनका ध्यान भी मैदान के कोनो पै था।
इस तरफ नूरा संभाले उस तरफ बाबा अड़े।
भाल पर मिट्टी लगाकर वीर वो आगे बढ़े।
आंधियां बारूद की चहुं ओर को छाने लगीं
गोलियां इस छोर से उस छोर तक जाने लगीं।
सब दिशाएं द्वंध के इतिहास को लिखने लगीं।
सैकड़ों रण चंडिका रण भूमि में दिखने लगी।
किंतु धोखा वक्त भी उस वक्त ऐसे दे गया।
इक सिपाही सीन का नूरा की जिंदा ले गया।
हो गई असहाय नूरा हाथ जब रिपु के पड़ी।
किंतु भय से मुक्त वो सिंहनि सरीखी थी खड़ी।
भेद लेना चाहते थे किंतु वो बोली नहीं।
दुश्मनों के सामने अपनी जुबां खोली नहीं।
दुष्ट आताताई फिर अब दुष्टता पर आ गए।
चांदनी के फर्श पर ज्यों मेघ काले छा गए।

दुश्मनों ने इस तरह बदला यहां अपना निकाला।
और इक लाचार लड़की को उन्होंने मार डाला।
अब अकेला सिंहनी का शेर था केवल इधर।
रक्त की बरसात होती घूम जाता था जिधर।
जंग जीतूंगी अकेली जिंदगी जिद पर अड़ी थी।
जोड़कर के हाथ अपने मृत्यु शर्मिंदा खड़ी थी।
सोचती थी क्या करूं इस ईस के अवतार का।
सोचती थी क्या करूं उस यक्ष की तलवार का।
सोचती थी क्या करूं उस कृष्ण के उपदेश का।
सोच की थी क्या करूं यमराज के आदेश का।
सोचती थी क्या समय कुछ और दे दूं मैं इसे।
सोचती थी क्या स्वयं का जोर दे दूं मैं इसे।
सोचती थी गर कहीं अन्याय ना हो तो करूं।
विश्वव्यापित शक्ति देकर संग इसके मैं लड़ूं।
आ गया था अंत अब इस जंग के ऐलान का।
दृश्य अब मैं क्या कहूं उस युद्ध के मैदान का।
हर तरफ बस बेबसी और गोलियों का शोर था।
चारों दिशाओं में निशा का जोर भी घनघोर था।
हाथ में यशवंत के बस आखरी गोली बची थी।
और पूरे जिस्म पर ही खून की मेहंदी रची थी।
इक प्रतिज्ञा वीर ने उस वक्त की मिट्टी उठाकर।
भींचली पिस्टल करो में और सीने पर लगाकर।
जीते जी छूने न दूंगा जिस मैं इन पापियों को।
तोड़ दूंगा मैं यहां इन ड्रैगनी बेसाखियों को।
तो इतिहास का वो दिन ही पूरा काला चिट्ठा हो गया।
जसवंत साधन हीन होकर मां की गोदी सो गया।
दीपक शर्मा दिव्यांशु
9149045652

जय जय
17/02/2023

जय जय

परतंत्रता जीवन का सबसे दुखद क्षण होता है, संसार का कोई भी प्राणी पराधीन रहकर जीवन यापन नहीं करना चाहता। जिस प्रकार में मेघ स्वतंत्र होकर भूतल पर बरसते हैं, और धरती को सिंचित करते हैं, उसी प्रकार स्वतंत्र व्यक्ति ही जीवन में सुखानुभूति अनुभव करता है। तथा अपनी प्रतिभाओं को लोक कल्याण के लिए प्रेषित करता है, और यदि हम ऐसा कहें कि स्वतंत्रता ही स्वस्थ मस्तिष्क का दूसरा नाम है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि किसी विद्वान ने कहा है.....
Sound mind lives in sound body.
अर्थात स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है और ऐसा केवल स्वतंत्रता से ही संभव है।

""आग जलती ही रहेगी क्रांतिकारी अंश की।
काट देंगे जड़ सभी हम क्रूरता के वंश की।
हो सुसज्जित आयुधों से चल पड़ेंगे हम सभी।
जब कभी आवाज उठेगी यहां विध्वंश की।""

दीपक दिव्यांशु
9149045652
#दीपकदिव्यांशु

25/01/2023
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23/01/2023

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आप सभी को मकर संक्रांति (उत्तरायण) के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ंक्रांति🪁🪁   🪁
14/01/2023

आप सभी को मकर संक्रांति (उत्तरायण) के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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