
30/01/2025
बात लगभग 1:15 के आसपास की होगी, 29 जनवरी दिन अमावस्या का था, संगम तट पर पूरी FYF टीम महाकुंभ में आये अनगिनत श्रद्धालुओं के दर्शन और संगम स्न्नान करने गयी थी। मौसम भी अच्छा था और लोगों का आधी रात को उत्साह देखते ही बन रहा था।
कोई स्नान करने आ रहा, तो कोई स्नान कर रहा और कोई लौट रहा था। कुछ बेहद थक चुके लोग वहीं किनारे बैठकर आराम कर रहे थे और कुछ भजन कीर्तन कर रहे थे। टीम FYF भी बैठकर मस्ती कर रही थी, चिरई उड़ - कउआ उड़ और उक्का-बुक्का खेल रही थी।
सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक से तेज गति से आ रही एम्बुलेंस की आवाज सुनाई दी।
एम्बुलेंस संगम नोज की ओर तेज गति से बढ़ी और उधर एकसाथ लाखों लोग भी जयघोष के साथ आगे बढ़ रहे थे।
देखते ही देखते और कई सारी एम्बुलेंस अपना काम शुरू कर चुकी थीं। हमें किसी बड़ी अनहोनी का अंदाजा तो लग गया था पर बात स्पष्ट न थी। दरअसल स्पष्ट करने लायक भी नहीं थी।
संगम तट लोगों के हुजूम से एकदम पैक हो चुका था। एकदम ठसाठस पैक।
उधर राहत बचाव के कार्य मे लगे लोग Evacuation का काम तेज गति से कर रहे थे। घटना घट चुकी थी बस अब स्थिति संभालने की चिंता थी। अधिकारी भी भीड़ के आगे बेबस नजर आए, पर प्रयास सम्पूर्ण किये उन्होंने।
टीम के बाकी साथी उस जगह पर जाने के लिए मना कर रहे थे पर रहा न गया तो मैंने भी लवकुश के साथ वहां जाकर बचे लोगों की जान बचाने के लिए वहां सो रहे लोगों को जगाकर जगह खाली करवाने की कोशिश करी।
लोग रो रहे थे परेशान थे, किसी का बैग छूटा था, किसी का चप्पल जूता तो किसी का सबकुछ ही छूट गया था। भटिंडा से आई दो महिलाएं बिछड़ गयी थीं तो शिवम उनके परिजनों से मिलने में पूरी कोशिश की और अंततः सफल हुए।
पर दुखदायी था यह देखना की कुछ बिछड़े लोग अब कभी नहीं मिलेंगे।
न ही इस दुनियां में किसी को दिखेंगे।
यह मंजर देख दिल दहल गया।
सारी गठरी सर पर लादे-लादे यहां तक अपना दान-पुण्य का सामान लिए लोग आ पहुंचे थे पर अब उनकी गठरी और झोलों का कोई रखवाला नहीं था। देखते ही देखते सबकुछ लावारिस सा हो गया था। अरे अभी ही तो सामान बचा रहे थे और अब खुद ही नहीं हैं। बस 15 मिनट के अंदर ही इतना बड़ा परिवर्तन।
पर बाकी लोगों की धार्मिक आस्था और विश्वास ऐसी की इसका भी प्रभाव नहीं पड़ा उन्होंने स्नान किये तब ही अपने घरों को लौटे।
आंख के सामने सबकुछ होता चला गया पर कुछ कर न पाए। फिर विचलित मन से सुबह 4 बजे तक स्नान करके माँ गंगा और यमुना से मृतकों की आत्मा की शांति की प्रार्थना कर अपनी पूरी टीम को लेकर वापस आ गया।