18/11/2022
पत्थरों पर जमी हुई नज़रें
गाढ़ा सय्याल लम्हा लम्हा रवाँ
फैलती बू फ़ज़ा, में नाक सड़ाँध
आसमाँ से बरस रहे मेंडक
गिरते हैं गिर के फिर सँभलते हैं
गाढ़े सय्याल में फुदकते हैं
और सूरज की सुर्ख़ आँखों में
काई की परतें जमती जाती हैं
बंद दरवाज़े पर सबा दस्तक
कोई आता न कोई जाता है
बंद दरवाज़ा मुस्कुराता है
- आदिल मंसूरी
©छगन कुमावतphotography91