Adhyatmik Anubhuti

Adhyatmik Anubhuti We help you in organizing Religious events like Shrimad Bhagwat Katha, Shri Ram Katha, Shiv katha, Nani Bai ka Mahira, Bhajan Sandhya and others.
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हम "अध्यात्मिक अनुभूति" के माध्यम से आपके द्वारा संकल्पित धार्मिक अनुष्ठानो के समस्त व्यवस्थाओ हेतु आपके सहयोग के लिए तत्पर हैं । विभिन्न अनुष्ठानो के अनुरूप वर्णित विधान को ध्यान में रखते हुए हमारी सेवाए आपके आयोजन को इच्छानुसार फलदायी स्वरुप के साथ संपन्न कराने के लिए संकल्पित है ।

राधिका जी का जन्म--- राधिका जी का जन्म कैसे हुआ?? वैसे तो राधिका जी के जन्म के सम्बंध में अनेक कथाएं शास्त्रों में आती ह...
02/01/2024

राधिका जी का जन्म--- राधिका जी का जन्म कैसे हुआ??
वैसे तो राधिका जी के जन्म के सम्बंध में अनेक कथाएं शास्त्रों में आती हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि आज से करीब पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट "रावल गांव" में भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल १२ बजे और सोमवार के दिन पिता वृषभानु एवं माता कीर्तिदा की पुत्री के रूप में श्री राधिका जी ने जन्म लिया... लेकिन कुछ दिन बाद उनके पिता महाराज वृषभानु जी ने वृंदावन में ही व्रषभानु पुरा गांव बसाया जिसे आज बरसाना के नाम से जाना जाता है. वर्तमान में यही बरसाना धाम राधा जी की गृह भूमि है. यही वह पवित्र भूमि है जहां श्री राधा जी ब्रज की अधीश्वरी के रुप में पूजी जाती है.श्री राधा रानी के जन्म के संबंध में कहा जाता है कि राधिका जी ने भगवान श्री कृष्ण की भांति अपनी माता के पेट से जन्म नहीं लिया..बल्कि उनकी माता ने अपने गर्भ में केवल "वायु" को ही धारण किया हुआ था तब देवी योग माया कि प्रेरणा से उन्होंने केवल वायु को ही जन्म दिया.परन्तु वहाँ स्वेच्छा से श्री राधा जी प्रकट हो गई...श्री राधा रानी जी कलिंदजा कूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतरित हुई थी.जिस समय श्री राधिका जी का जन्म हुआ उस समय सम्पूर्ण दिशाए निर्मल हो उठी.तब महाराज वृषभानु और महारानी कीर्तिदा ने अपनी पुत्री राधिका जी के कल्याण की कामना से दो लाख उत्तम गौए ब्राह्मणों को दान की..राधिका जी के जन्म की दूसरी कथा इस प्रकार है कि एक दिन जब वृषभानु जी सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक बालिका "कमल के फूल" पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने पुत्री के रूप में अपना लिया.तब राधिका जी का अभिषेक किया गया जिस समय श्री राधिका जी का अभिषेक किया गया उस समय सभी देवी-देवताओं ने वहां पुष्प वर्षा की और राधा जी को स्वर्ग के सिंहासन पर बिठाया लेकिन स्वर्ग के सिंहासन पर आसित करते समय सभी देवताओं के मन में ये विचार आया कि राधा रानी तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की अधीश्वरी देवी हैं तो फिर उन्हें केवल सोलह कोस में फैले वृंदावन का ही आधिपत्य सौपनें की क्या आवश्यकता है.तब काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि बैकुंठ से भी कई गुना अधिक महत्व तो मथुरा का होगा....और मथुरा से भी अधिक महत्व वृंदावन का होगा..राधिका जी आयु में श्रीकृष्ण से ग्यारह माह बडी थीं. लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आँखे नहीं खोली है.इस बात से उन्हें बड़ा दुःख हुआ लेकिन कुछ समय पश्चात जब नन्द बाबा कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले कृष्ण के साथ वृषभानु जी के घर आईं तब वृषभानु जी और कीर्ति जी ने उनका स्वागत किया तब यशोदा जी कान्हा जी को गोद में लिए राधाजी के पास आती है.और जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है.तब राधा जी पहली बार अपनी आँखे खोलती है.अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए ,वे एक टक कृष्ण जी को देखती ही रहती हैं...अपनी प्राण प्रिय राधिका को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर श्री कृष्ण स्वयं अत्यधिक आनंदित होते है. एक बार जब राधाजी से श्री कृष्ण ने पूछा कि हमारे साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी. तो राधाजी ने कहा मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए मैं तो सदा आपके पीछे ही रहूंगी।

 #राधाजी_का_काजलआज ललिता जू प्रिया जू का श्रृंगार कर रही हैं जब श्रृंगार पूर्ण हो गया तो प्रिया जू को दर्पण सेवा करायी व...
29/12/2023

#राधाजी_का_काजल

आज ललिता जू प्रिया जू का श्रृंगार कर रही हैं जब श्रृंगार पूर्ण हो गया तो प्रिया जू को दर्पण सेवा करायी विशाखा जू ने किशोरी जू ने जब अपने मुख चन्द्र को दर्पण मैं निहारा तो ललिता जू की ओर देखने लगी।
आज ललिता जू ने श्रृंगार मैं त्रुटि कर दी थी ‘ललिते आज आप काजल लगानो भूल गयी‘ ललिता जू बोली ‘लाडो जब काजल श्यामसुंदर की याद मैं आँखन सौ बह ही जानो है तो लगावे को लाभ हू कहा है, आप कह रही हो तो लगाय दुगीं नेक आँख तो बन्द करो‘ प्रिया जू ने आँख बन्द की ललिता जू ने ईशारे से ठाकुर जी को अन्दर बुला लिया ओर प्रिया जू के सामने ठाकुर जी को खड़ा कर दिया।
किशोरी जू ने जब नेत्र खोले ओर प्राणवल्लभ नन्दनन्दन को सामने पाया तो ह्रदय प्रैम रस से भर गया रोम-रोम से दिव्य प्रेमरस स्फुरित होने लगा किन्तु अगले ही पल किशोरी सहज हो रोष प्रकट करते हुऐ ललिता जू से बोली ‘आपने यह काह कियो मैया कि आज्ञा को हू भय नाय रह्यो आपकू जो आप इनकू महल के अन्दर ले आयीं
‘ललिता जू हाथ जोड़ के बोली ‘लाडो आप दोऊन को हाल हमसौ देखो नाय जा रह्यो यहाँ आप व्याकुल ओर श्यामसुंदर ने तो भोजन पानी सब त्याग दियो आप ही बताओ हम केसे ये सब सहते।
‘किशोरी जू अब कृत्रिम रोष प्रकट करते हुऐ बोली ‘तो या सबसौ मेरे काजल कौ का सम्बन्ध, काजल की डिबिया तो ले आयो। ‘ललिता जू हाथ जोड़ के बोली ‘लाडली जू इनसौ बडो कोई कारो है का या संसार मैं श्यामसुंदर कू आज अपने नैनन मैं बसाय लेयो काजल के संग-संग एक और लाभ हू मिलेगो आपकू, अब काहू कि नजर हूँ नाय लगेगी।
नन्दनन्दन ने प्रिया जू का दर्शन किया और वचन लिया कि वह उनको दर्शन देने के लिये अटारी पर जरूर आयेगी तो प्रिया जू ने भी ठाकुर जी को थोड़ा झिडका कि आप इतने महल के चक्कर लगाओगे तो यही होगा। दोनों ने एकदूसरे के परस्पर दर्शन किये।
यह ब्रज की लीला है। बिना लाडली जू के दर्शन किये ठाकुर जी का कलेवा भी नहीं होता।

इत बनमाल उत भृकुटि विशाल नथइत मोर पंख उत बैंदी भाल दीना है।।इत पीताम्बर उत चुनरी अनूप रंगइत श्याम रंग उत गौर रंग भीना है...
25/12/2023

इत बनमाल उत भृकुटि विशाल नथ
इत मोर पंख उत बैंदी भाल दीना है।।
इत पीताम्बर उत चुनरी अनूप रंग
इत श्याम रंग उत गौर रंग भीना है।।
इत सो बजावे ताल बाँसुरी अनूप राग
उत सो बजे पग नूपुर झन झीना है।।
जोड़ी अनूठी लागे उपमा सब झूठी
राधा सोने की अंगूठी कृष्ण नीलम नगीना है।।

मानसी गंगा पार पै ठाड़े जुगल किशोर ।ब्यार चलै अचरा उड़ै पीतांबर को छोर ।।
14/12/2023

मानसी गंगा पार पै ठाड़े जुगल किशोर ।
ब्यार चलै अचरा उड़ै पीतांबर को छोर ।।

परम पूज्य श्रीराधाबाबा द्वारा सन् १९३८ ई० में ईडन गार्डेंस कलकत्तामें दिये गये प्रवचनका अंश...          ‘हम भगवान्‌के है...
09/12/2023

परम पूज्य श्रीराधाबाबा द्वारा सन् १९३८ ई० में ईडन गार्डेंस कलकत्तामें दिये गये प्रवचनका अंश...

‘हम भगवान्‌के हैं और भगवान् हमारे हैं’— इस अपनेपनके सम्मुख योग्यता, पात्रता, अधिकार आदि कुछ भी महत्त्व नहीं रखते । यह सम्पूर्ण साधनोंका फल है ।

छोटा-सा बच्चा अपनेपनके बलपर, आधीरातमें रोनेपर सारे घरको नचाता है । सारे घरवाले उठकर उसके हठको पूरा करते हैं । इसलिये, जब हम भगवान्‌के अंश हैं, तो हमें अपनी योग्यताकी ओर कदापि नहीं देखकर मात्र भगवान्‌के साथ अपनेपनको ही देखते रहना चाहिये ।

भगवान कहते है जब तू “ममैव” — मेरा ही है — तो फिर चिंता करके अथवा _अपने साधन द्वारा शुद्ध होनेका मिथ्या प्रयास करके, तू अपराध ही करता है ।_ यह तेरा अभिमान है कि तू जैसा है, जो है — वैसा ही मेरे पास दौड़ता हुआ न आकर, शुद्ध—पवित्र होकर मेरे पास आना चाहता है । यह तेरा अभिमान मेरे प्रति अविश्वासमूलक है । जब मैं कहता हूँ कि तू ‘ममैव’, मात्र मेरा ही है, फिर मेरे प्रति पूरा विश्वास, भरोसा नही रखना — तेरा निश्चय ही मेरे प्रति अपराध है । तुझमें अपने दोषोंको लेकर चिंता करना वास्तवमें अपने बलके अभिमानके ही कारण है । यह नियम है कि दोषोंको मिटानेमें अपनी सामर्थ्य मालुम होनेसे ही उनको मिटानेकी चिंता होती है । यदि हममें दोष मिटानेकी सामर्थ्यका अभिमान सर्वथा नही हो, तो हम भगवान्‌को पुकारेंगे और अधिक बलपूर्वक भगवान्‌से अपने सम्बन्धकी स्मृति करके उनसे ही चिपकेंगे । जैसे, छोटे बालकके पास कुत्ता आ जाये — वह अपनेमें जब कुत्तेको भगानेकी सामर्थ्य नही देखता, तो रोकर माँको ही पुकारता है । मेरा अंश होकर तू चिंता करता है, तो कलंक आता है मुझपर । तू इनकी चिंता मत कर । इनकी चिन्ता मैं करूँगा । जब तू मेरा है, तो अपना सब भार, शोक, चिंता मुझपर छोड़कर निर्भर, निश्चिंत, निःशोक हो जा ।

देऔ दान हमारो, किशोरी राधे।। हम गहवर के हैं रखवैया, बरसानो सुसरारो।अद्भुत रूप बदन नवयौवन, नैंनन काजर कारो। बहुत दिना तुम...
29/11/2023

देऔ दान हमारो, किशोरी राधे।।
हम गहवर के हैं रखवैया, बरसानो सुसरारो।
अद्भुत रूप बदन नवयौवन, नैंनन काजर कारो।
बहुत दिना तुमने हम टारे, अब नाँय होय किनारो।
पायन पायल नूपुर राजैं, घाघर घूम घुमारो।
बहुत दिना की लाग लगी है, जबते रूप निहारो।
रसिक रीति रति गांठ जोरलेओ, तबही परै सहारो।
मटकी खोल दिखादेओ प्यारी, चाखें दही तिहारो।
'टोडर' श्याम बडो उतपाती, कान्हा बंशी बारौ।।

श्री गौरव गोस्वामी (टोडर गोस्वामी)
नन्दगाँव जी द्वारा रचित।।

ध्यान मूलं गुरु मूर्ति , पूजा मूलं गुरु पदम् मन्त्र मूलं गुरु:वाक्यं , मोक्ष मूलं गुरु कृपाश्री गुरु चरण कमलेभ्यों नमः 👏...
26/11/2023

ध्यान मूलं गुरु मूर्ति , पूजा मूलं गुरु पदम्
मन्त्र मूलं गुरु:वाक्यं , मोक्ष मूलं गुरु कृपा

श्री गुरु चरण कमलेभ्यों नमः 👏🏻👏🏻👏🏻

गुरु में संसार समाया है इनका ही आशीष पाया है
प्रभु ने खुद से भी ऊंचा, गुरु का स्थान बनाया है
गुरुवर तो ज्ञान के सागर हैं,
इनके क़दमों मे ही जन्नत है,
इनकी वाणीं मे ही अम्रत है
इनके आशीर्वाद मे ही परम सुख है

गुरु सो प्रीतिनिवाहिये , जेहि तत निबहै संत।
प्रेम बिना ढिग दूर है , प्रेम निकट गुरु कंत।

सभी संत भगवानों के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम 👏🏻

👏🏻 जय जय श्री सीता राम

""आज का दिव्य सन्देश" "जिस प्रकार यह संसार अनंतबीजों से भरा हुआ है, उसमें कुछ हमारे काम के हैं कुछ नहीं,।इसी प्रकार यह म...
21/11/2023

""आज का दिव्य सन्देश" "जिस प्रकार यह संसार अनंत
बीजों से भरा हुआ है, उसमें कुछ हमारे काम के हैं कुछ नहीं,।इसी प्रकार यह मन का क्षेत्र भी अनंत विचार रूपी बीजों से भरा पड़ा है, जिनमें कुछ विचार हमारे काम के हैं, कुछ काम के नहीं। इन्हे पहचानने के लिए हमें अंतर्मन में झांकना होगा।जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि किरपा आप पर सदैव बनी रहें।

14/11/2023
*_केवल छज्जों और चौबारों पर ही नहीं, आस्था का एक दीप हमारे रिश्तों की मुंडेर पर भी आजीवन जलता रहे,   इसी भावना के साथ......
12/11/2023

*_केवल छज्जों और चौबारों पर ही नहीं, आस्था का एक दीप हमारे रिश्तों की मुंडेर पर भी आजीवन जलता रहे, इसी भावना के साथ...._*

*दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं*

अहोई अष्टमी 5 नवम्बर 2023(रविवार)सन्तान प्राप्ति एवं पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए विशेष स्नान.......जो राधा कुंड नहाई, पुत...
05/11/2023

अहोई अष्टमी
5 नवम्बर 2023(रविवार)

सन्तान प्राप्ति एवं पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए विशेष स्नान.......

जो राधा कुंड नहाई, पुत्र रतन जन पाई

श्री वृषभान कुमारि जूं, अष्ट सखिन के झुंड डगर बुहारत सांवरौ जै जै राधाकुंड। ऐसौ ही कुछ नजारौ ब्रज क्षेत्र के प्रमुख धाम राधाकुंड कौ। मथुरा नगरी से 26 किलोमीटर दूर राधाकुंड का अलग ही धार्मिक महत्व है। मन में पुत्र रत्न की आस, ऊपर से राधा जी पर अटूट विश्वास, कि अबकी बार राधा कुंड में स्नान करने से मेरी गोद जरूर भरेगी। इसी आस्था के साथ कार्तिक मास की अष्टमी (अहोई अष्टमी) को 5 नवम्बर 2023(रविवार) की रात्रि में 12 बजे से) राधा कुंड में हजारों दंपति स्नान कर पुत्र रत्न प्राप्ति की कामना करेंगे। जो राधा कुंड नहाई, पुत्र रतन जन जाई। ऐसा ही इतिहास रहा है अहोई अष्टमी पर होने वाले महा स्नान का। कार्तिक मास की अष्टमी के दिन राधा कुंड में स्नान करने वाली सुहागिनों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इसके चलते यहां कल रात स्नान किया जाएगा। इसलिए राधाकुंड पर देश से नहीं अपितु विदेश भी श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि कार्तिक मास की अष्टमी को वे दंपति जिन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हुई है वे निर्जला व्रत रखते हैं और अष्टमी की रात्रि को पुष्य नक्षत्र में रात्रि 12 बजे से राधा कुंड में स्नान करते हैं। इसके बाद सुहागिनें अपने केश खोलकर रखती हैं और राधा की भक्ति कर आशीर्वाद प्राप्त कर पुत्र रत्न प्राप्ति की भागीदार बनती हैं। मान्यता है कि आज भी पुण्य नक्षत्र में राधा जी और कृष्ण रात्रि 12 बजे तक राधाकुंड में अष्ट सखियों संग महारास करते हैं। इसके बाद पुण्य नक्षत्र शुरू होते ही वहां स्नान कर भक्ति करने वालों को दोनों आशीर्वाद देते हैं और पुत्र की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता है कि राधा जी ने उक्त कुंड को अपने कंगन से खोदा था इसलिए इसे कंगन कुंड भी कहा जाता है।श्रीकृष्ण ने राधा जी को दिया था वरदानकथानकों के अनुसार श्रीकृष्ण गोवर्धन में गौचारण लीला करते थे। इसी दौरान अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप धरके श्रीकृष्ण पर हमला किया। इस पर श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। तब राधारानी ने श्रीकृष्ण को बताया कि उन्होंने अरिष्टासुर का वध तब किया जब वह गौवंश के रूप में था इसलिए उन्हें गौवंश हत्या का पाप लगा है। इस पाप से मुक्ति के उपाय के रूप मेंश्रीकृष्ण अपनी बांसुुरी से एक कुंड (श्याम कुंड) खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधा जी ने श्याम कुंड के बगल में अपने कंगन से एक और कुंड (राधा कुंड) खोदा और उसमें स्नान किया। स्नान करने के बाद राधा जी और श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। महारास में दोनों कई दिन रात तक लगातार रास रचाते सुधबुध खो बैठे। महारास से प्रसन्न होकर राधा जी से कृष्ण ने वरदान मांगने को कहा। इस पर राधा जी ने कहा कि हम अभी गौवंश वध के पाप से मुक्त हुए हैं। वे चाहती हैं कि जो भी इस तिथि में राधा कुंड में स्नान करे उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो। इस पर श्री कृष्ण ने राधा जी को यह वरदान दे दिया। इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड में मिलता है। उल्लेख है कि महारास वाले दिन कार्तिक मास की अष्टमी (अहोई अष्टमी) थी। तभी से इस विशेष तिथि पर पुत्र प्राप्ति को लेकर दंपति राधाकुंड में स्नान कर राधा जी से आशीर्वाद मांगते हैं।पूर्व में अरीध वन था राधाकुंड का नाम। राधा कुंड नगरी कृष्ण से पूर्व राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी। बताया जाता है कि अरिष्टासुर अति बलवान व तेज दहाड़ वाला था। उसकी दहाड़ से आसपास के नगरों में गर्भवती महिलाओं के गर्भ गिर जाते थे। इससे ब्रजवासी खासे परेशान थे। इस कारण श्री कृष्ण ने उसका वध करने को लीला रची थी।
Courtesy: Shri Harish thakurji

आज का भगवद चिंतन।भक्त को परमानन्द को प्राप्त करने के लिए परमात्मा के उस प्रकाश स्वरूप को जानना होगा,अपने ह्रदय में उसकी ...
30/10/2023

आज का भगवद चिंतन।भक्त को परमानन्द को प्राप्त करने के लिए परमात्मा के उस प्रकाश स्वरूप को जानना होगा,अपने ह्रदय में उसकी अनुभूति करनी होगी।अनेक सन्तो ने इस अनुभूति को प्राप्त किया था।किंतु हम अनुभूति शून्य होने के कारण परम् सत्य से वंचित हो गए।हम अपने अंतर्मन में प्रवेश करके उस अनुभूति को,उस प्रकाश को,उस सत्य को पा सकते हैं।यह प्रकाश में आने का ज्ञान है,यह अनुभूति है।इसे आप इस प्रकार समझ सकते हैं। सत्य को समझने के लिए, लघु कथा पढ़े।. एक गाँव मे एक अंधा व्यक्ति रहता था।सुबह होने पर लोग उसे कहते कि,सवेरा हो गया,उजाला हो गया,तो वो अंधा व्यक्ति कहता कि लाओ उजाले को मेरे सामने मै छू कर देखूंगा,चख कर देखूंगा,उसका क्या स्वाद है।गाँव वाले उसे कहते यह छूने और चखने की वस्तु नही।तो अंधा व्यक्ति सोचता कि गाँव वाले मुझे धोखे में डाल रहे हैं।ऐसे व्यक्ति को उपदेश की आवश्यकता नही।बल्कि उसे आंखों की आवश्यकता है।इसी प्रकार परमात्मा को जानने के लिए,उनकी अनुभूति पाने के लिए हमे आंखों की नही बल्कि,अंतर्मन में झांकने की आवश्यकता हैं।परमात्मा का वास प्रत्येक कण में है, उन्हें देखकर नही,अपितु उनकी उपस्थिति को भक्ति ज्ञान के द्वारा महसूस किया जा सकता है।जय जय श्री राधेकृष्ण जी।

ब्रज की तीन बड़ी पहिचान !!गिरि गोवर्धन यमुना मैया , ब्रज रज रहीं महान !!गोवर्धन की परिक्रम्मा कर , कृष्ण स्वरूप हिये मान...
17/10/2023

ब्रज की तीन बड़ी पहिचान !!
गिरि गोवर्धन यमुना मैया , ब्रज रज रहीं महान !!
गोवर्धन की परिक्रम्मा कर , कृष्ण स्वरूप हिये मान !!
पूरी होंय कामना करकें , मानसी गंगा पान !!
सुबह शाम जो करें आरती ,यमुना जी स्नान !!
कृष्ण प्रेम हिये उपज पड़े , जो चुनरी करें प्रदान !!
धारण करें भाल शिर ऊपर , ब्रज रज अति सन्मान !!
होय बास गोलोक धाम नित ,देखो संत प्रमान !!
"राम शरण " गिर कालिंदी रज ,कहालों करे बखान !!

।।श्रीहरिः।। *एक सिद्धान्त है कि जो शास्‍त्रोंका, पुराणोंका, वेदोंका आदर करता है, उसका स्वयंका आदर होता है । इनका निरादर...
11/10/2023

।।श्रीहरिः।।

*एक सिद्धान्त है कि जो शास्‍त्रोंका, पुराणोंका, वेदोंका आदर करता है, उसका स्वयंका आदर होता है । इनका निरादर करनेसे स्वयंका ही निरादर होता है, जिसका परिणाम बहुत खराब होता है ।*

*शास्‍त्रोंको समझना हो तो अच्छे जानकार पुरुषोंसे समझें । हमारे भीतर राग-द्वेष होंगे तो शास्‍त्रोंमें भी हमें वैसा ही दीखेगा ।*

*अगर मनुष्य चाहे तो वह शास्‍त्रोंके अन्ययनके बिना भी यह अनुभव कर सकता है कि जो वस्तु मिली है और बिछुड़ जायगी, वह अपनी और अपने लिये नहीं है ।*

*जाल दो प्रकारका है‒संसारी और शास्‍त्रीय । संसारके मोहरूपी दलदलमें फँस जाना संसारी जालमें फँसना है और शास्‍त्रोंके, सम्प्रदायोंके द्वैत-अद्वैत आदि अनेक मत-मतान्तरोंमें उलझ जाना शास्‍त्रीय जालमें फँसना है । संसारी जाल तो उलझे हुए छटाँक सूतके समान है और शास्‍त्रीय जाल उलझे हुए सौ मन सूतके समान है ।*

*शरीर, स्‍त्री-पुत्र, धन-सम्पत्ति आदिमें राग होना ‘सांसारिक मोह’ है और द्वैत, अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैताद्वैत आदि दार्शनिक मतभेदोंमें उलझ जाना ‘शास्‍त्रीय मोह’ है । इन दोनोंका त्याग करनेपर मनुष्यका भोगोंसे वैराग्य हो जाता है और उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है ।*


*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
_(‘कल्याणकारी सन्तवाणी’ पुस्तकसे)_

एक बार जरूर पढ़ें 🙏🙏यमुनाजी में बाढ़ आ गई थी। सुदामा कुटी के सामने सड़क पर तीन फुट गहरा पानी भर गया। खूब धारा चलने लगी। ...
05/10/2023

एक बार जरूर पढ़ें 🙏🙏

यमुनाजी में बाढ़ आ गई थी। सुदामा कुटी के सामने सड़क पर तीन फुट गहरा पानी भर गया। खूब धारा चलने लगी। ज्ञानगुदड़ी में पानी पहुँचते ही प्रेमी लोग ज्ञानगुदड़ी यमुना में स्नान करने लगे। तीन दिन यह पर्व रहा। श्रीयमुना श्रीकृष्ण के द्रवित प्रेम का स्वरूप है। पानी नहीं हैं। प्रेम ही पिघला भरा है। ज्ञानगुदड़ी में गोपी- उद्धव सम्वाद हुआ उस समय राधारानी का प्रेम उमड़ा। नेत्रों से प्रेम के अश्रु प्रवाहित हुए। वे ज्ञानगुदड़ी की रज में व्याप्त हैं। यमुना और उस प्रेमाश्रु गंगा का संगम हो जाने से पर्व बन जाता है। संगम होने से तीर्थराज बन जाता है। ज्ञानगुदड़ी में वर्ष १९९५ में तीर्थ राज बना उसमें प्रेमी लोगों ने स्नान कर धन्य माना।

आवत प्रात बजावत भैरवी मोर पखा पट पीत संवारो ।मैं सुन आली री छुहरी बरसाने गैलन मांहि निहारो ॥नाचत गायन तानन में बिकाय गई ...
30/09/2023

आवत प्रात बजावत भैरवी मोर पखा पट पीत संवारो ।
मैं सुन आली री छुहरी बरसाने गैलन मांहि निहारो ॥
नाचत गायन तानन में बिकाय गई री सखि जु उधारो ।
काको है ढोटा कहा घर है और कौन सो नाम है बाँसुरी वारो ॥

Shri Radha Rani ke Janam bhaye ki ap sabhi ku bahut bahut bahut badhai.....🎂🎉
23/09/2023

Shri Radha Rani ke Janam bhaye ki ap sabhi ku bahut bahut bahut badhai.....
🎂🎉

*शास्त्रों के अनुसार पूजा अर्चना में वर्जित काम**१) गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं**२) देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं**३) शिव लिंग प...
20/09/2023

*शास्त्रों के अनुसार पूजा अर्चना में वर्जित काम*

*१) गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं*
*२) देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं*
*३) शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं*
*४) विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं*
*५) दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें*
*६) मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें*
*७) तुलसी पत्र चबाकर न खाएं*
*८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे न रखें*
*९) दर्शन करके बापस लौटते समय घंटा न बजाएं*
*१०) एक हाथ से आरती नहीं लेना चाहिए*
*११) ब्राह्मण को बिना आसन बिठाना नहीं चाहिए*
*१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम वर्जित है*
*१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से प्रश्न नहीं पूछना चाहिए*
*१४) घर में पूजा करने अंगूठे से बड़ा शिवलिंग न रखें*
*१५) तुलसी पेड़ में शिवलिंग किसी भी स्थान पर न हो*
*१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श नहीं करना है*
*१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल नहीं फोडना है*
*१८) रजस्वला स्त्री का मंदिर प्रवेश वर्जित है*
*१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श न करें*
*२०) शिव जी की पूरी परिक्रमा नहीं किया जाता*
*२१) शिव लिंग से बहते जल को लांघना नहीं चाहिए*
*२२) एक हाथ से प्रणाम न करें*
*२३) दूसरे के दीपक में अपना दीपक जलाना नहीं चाहिए*
*२४.१)चरणामृत लेते समय दायें हाथ के नीचे एक नैपकीन रखें ताकि एक बूंद भी नीचे न गिरे*
*२४.२) चरणामृत पीकर हाथों को शिर या शिखा पर न पोछें बल्कि आंखों पर लगायें शिखा पर गायत्री का निवास होता है उसे अपवित्र न करें*
*२५) देवताओं को लोभान या लोभान की अगरबत्ती का धूप न करें*
*२६) स्त्री द्वारा हनुमानजी शनिदेव को स्पर्श वर्जित है*
*२७) कंवारी कन्याओं से पैर पडवाना पाप है*
*२८) मंदिर परिसर में स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग दें*
*२९) मंदिर में भीड़ होने पर लाईन पर लगे हुए भगवन्नामोच्चारण करते रहें एवं अपने क्रम से ही अग्रसर होते रहें*
*३0) शराबी का भैरव के अलावा अन्य मंदिर प्रवेश वर्जित है*
*३१) मंदिर में प्रवेश के समय पहले दाहिना पैर और निकास के समय बाया पांव रखना चाहिए*
*३२)घंटी को इतनी जोर से न बजायें कि उससे कर्कश ध्वनि उत्पन्न हो*
*३४)हो सके तो मंदिर जाने के लिए एक जोड़ी वस्त्र अलग ही रखें*
*३५) मंदिर अगर ज्यादा दूर नहीं है तो बिना जूते चप्पल के ही पैदल जाना चाहिए*
*३६) मंदिर में भगवान के दर्शन खुले नेत्रों से करें और मंदिर से खड़े खड़े वापिस नहीं हों,दो मिनट बैठकर भगवान के रूप माधुर्य का दर्शन लाभ लें*
*३७) आरती लेने अथवा दीपक का स्पर्श करने के बाद हस्तप्रक्षालन अवश्य करें*
*इन सभी बताई गई बातें हमारे ऋषि मुनियों से परंपरागत रूप से प्राप्त हुई है।*

परमपूज्य भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार-द्वारा रचित पद—                    रघुपति   राघव    राजा    राम               ...
18/09/2023

परमपूज्य भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार-द्वारा रचित पद—

रघुपति राघव राजा राम
पतीतपावन सीताराम
जय रघुनन्दन, जय सियाराम
जानकिवल्लभ सीताराम
जय लक्ष्मण, जय जय श्रीराम
भरत-सत्रुहन शोभा-धाम
कपिपति लंकापति अभिराम
जय श्रीमारुति पूरण-काम
रघुपति राघव राजा राम
पतीतपावन सीताराम

आजकल “भद्रगिरीश्वर शालिग्राम.....” आदि तरह-तरहकी पंक्तियाँ जोड़कर इसे श्रीलक्ष्मणाचार्यजीके नामसे प्रचारित किया जाता है । श्रीलक्ष्मणाचार्यजीने ऐसी कोई पंक्तियाँ लिखी ही नहीं हैं ।

यह असली पद परमपूज्य भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार-द्वारा रचित है । पूज्य श्रीविष्णुदिगम्बरजी पलुस्करको यह श्रीरामधुन अतिशय प्रिय था । उनका नियम था कि यह रामधुन उन्हें दिन-रात—चौबीस घंटे अखण्ड रूपसे सुनाया जाय ।

श्रीगांधीजीके सभाओंमें भी इस रामधुनको प्रचलित करनेका श्रेय पूज्य श्रीविष्णुदिगम्बरजीको ही है । इसके अतिरिक्त परमपूज्य श्रीभाईजी-द्वारा रचित एक और पद श्रीगांधीजीको बहुत प्रिय था, वे प्रतिदिन नियमित रूपसे प्रातःकाल एवं सायंकालकी प्रार्थना-सभामें वह पद सुना करते थे ।

चित्र-विवरण:— नगर-संकीर्तनका नेतृत्व करते हुए परमपूज्य भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार

श्री ठाकुरजी का स्नान के समय मचलना....जसुमति जबहिं कह्यौ अन्वावन, रोइ गए हरि लोटत री ।तेल उबटनौं लै आगैं धरि, लालहिं चोट...
15/09/2023

श्री ठाकुरजी का स्नान के समय मचलना....

जसुमति जबहिं कह्यौ अन्वावन, रोइ गए हरि लोटत री ।
तेल उबटनौं लै आगैं धरि, लालहिं चोटत-पोटत री ॥
मैं बलि जाउँ न्हाउ जनि मोहन, कत रोवत बिनु काजैं री ।
पाछैं धरि राख्यौ छपाइ कै उबटन-तेल-समाजैं री ॥
महरि बहुत बिनती करि राखति, मानत नहीं कन्हैया री ।
सूर स्याम अतिहीं बिरुझाने, सुर-मुनि अंत न पैया री ॥

भावार्थ :-- श्री यशोदा जी जब स्नान कराने को कहा तो श्यामसुन्दर रोने लगे और पृथ्वी पर लोटने लगे । (माता ने) तेल और उबटन लेकर आगे रख लिया और अपने लाल को पुचकारने-दुलारने लगीं । (वे बोलीं) `मोहन! मैं तुम पर बलि जाऊँ, तुम स्नान मत करो, किंतु बिना काम (व्यर्थ) रो क्यों रहे हो ?' (माता ने) उबटन, तेल आदि सामग्री अपने पीछे छिपाकर रख ली । श्रीव्रजरानी अनेक प्राकर से कहकर समझाती हैं, किंतु कन्हाई मानते ही नहीं । सूरदास जी कहते हैं कि जिन का पार देवता और मुनिगण भी नहीं पाते, वे ही श्यामसुन्दर बहुत मचल पड़े हैं ।

गहवर कुंज कुटीर में कौन कहे हरि नाय ।ब्रज की लीला प्रगट है निरख समझ मन माय ।।
13/09/2023

गहवर कुंज कुटीर में कौन कहे हरि नाय ।
ब्रज की लीला प्रगट है निरख समझ मन माय ।।

श्रीसीतारामजीजय श्री जानकीनाथ...🙏जानकी द्वारा गिरिजा (मां पार्वती) वंदन अपने सखी द्वारा श्रीराम के अप्रतिम सौंदर्य को सु...
12/09/2023

श्रीसीतारामजी
जय श्री जानकीनाथ...🙏

जानकी द्वारा गिरिजा (मां पार्वती) वंदन

अपने सखी द्वारा श्रीराम के अप्रतिम सौंदर्य को सुनकर सीता जी चल पड़ीं। तुलसीदास जी लिखते हैं -
चली अग्र करि प्रिय सखि सोई।
प्रीति पुरातन लखइ न कोई ।।
उसी प्यारी सखी को आगे करके सीता जी चलीं। पुरानी प्रीति को कोई लख नहीं पाता।

हम सभी जानते हैं कि मनु - शतरूपा के तप से प्रसन्न होकर अंतर्यामी प्रभु ने उनके मनोरथ को पूरा करने के लिए स्वयं अवतार लिया था। साथ में यह भी कहा था -
आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया ।
सोच अवतरिहि मोरि यह माया ।।
आदिशक्ति यह मेरी (स्वरूपभूता) माया भी , जिसने जगत को उत्पन्न किया है , अवतार लेगी।
" प्रीति पुरातन " के माध्यम से सीता जी इसी तथ्य की ओर संकेत कर रही हैं कि इनके साथ तो जन्म - जन्म का संबंध रहा है।

जब सीताजी ने श्रीराम के सौंदर्य को देखा , तब वह अपने पिता के प्रण का स्मरण कर क्षुब्ध हो गईं।
नख सिख देखि राम कै सोभा ।
सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा ।।
(सीता जी के क्षुब्ध होने का कारण यह था कि उनके पिता ने विवाह के लिए यह शर्त रखी थी कि जो शिव जी का धनुष-भंग करेगा , उसी के साथ सीता का विवाह होगा। सीता जी सोच रही हैं कि यदि इनसे धनुष-भंग नहीं होगा , तो फिर मेरा मिलन कैसे होगा?)
सीता जी गिरिजा पूजन कर बाहर निकली थीं , पर यह सोच कर वे पुनः वंदना करने मंदिर में गईं।
गई भवानी भवन बहोरी ।
बंदि चरन बोली कर जोरी ।।

माता पार्वती देवी के चरणों की वंदना करके हाथ जोड़कर सीता जी बोलीं -
जय जय गिरिबरराज किसोरी ।
जय महेस मुख चंद चकोरी ।।
हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती ! आपकी जय हो , जय हो। हे महादेव जी के मुखरूपी चंद्रमा की (ओर टकटकी लगाकर देखने वाली) चकोरी ! आपकी जय हो।

सेवत तोहि सुलभ फल चारी।
बरदायिनी पुरारि पिआरी ।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे ।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे ।।
हे वर देने वाली ! हे त्रिपुर के शत्रु शिवजी की प्रिय पत्नी ! आपकी सेवा करने से चारों फल सुलभ हो जाते हैं । हे देवी ! आपके चरण - कमलों की पूजा करके देवता , मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं ।

माता पार्वती जी सीता जी के विनय और प्रेम के वश में हो गईं और कहा -
सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
हे सीता ! हमारी सच्ची आशीष सुनो , तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी।
इस प्रकार श्री गौरी जी का आशीर्वाद सुनकर जानकी जी हृदय में हर्षित हुईं और प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं।
माता पार्वती की जय।
सभी भक्तों को नमन एवं वंदन।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।

🙏 मन का कचरा 🙏. एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी, भिक्षा दे दे माते ...
09/09/2023

🙏 मन का कचरा 🙏.

एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी,

भिक्षा दे दे माते !!
घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोली मे भिक्षा डाली और कहा,
“महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए!”
स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।”
दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी – भीक्षा दे दे माते!!
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम-पिस्ते भी डाले थे,
वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी।
स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया।
वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए।
वह बोली, “महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है।”
स्वामीजी बोले, “हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।”
स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी। दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।”
स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न ?”
स्त्री ने कहा : “जी महाराज !”
स्वामीजी बोले, “मेरा भी यही उपदेश है।
मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा।
यदि उपदेशामृत पान करना है, तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए,
कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।

कृपा हे श्री राम.!! दिव्य अलौकिक श्रीचरणों में सादर वंन्दन समर्पित करता हूँ!
!! जय श्री राम, जय श्रीराम भक्त हनुमान !!

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )

** देविक प्रवृतियों को धारण करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **

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बरफी सी बृज नारि बनी,गुजिया से गीत और गूझा से ग्वाला ।पेड़ा से प्यारे बने बलदेव जी,रस खीर सी रोहिणी रूप रसाला नन्द महीप ...
07/09/2023

बरफी सी बृज नारि बनी,
गुजिया से गीत और गूझा से ग्वाला ।
पेड़ा से प्यारे बने बलदेव जी,
रस खीर सी रोहिणी रूप रसाला
नन्द महीप बने नमकीन,
गोकुल गोप सब गरम मसाला ।
जाया यशोदा जलेबी सी रानी ने,
रबड़ी सी रात में लडुआ सौ लाला ।

लल्ला के जन्म भये की बहुत बहुत बधाई ।

*तर्क बुद्धि*               (((((())))))एक ब़ह्म ज्ञानी, समग्र सत्य और पूर्ण ब्रह्म को जानने के लिए व्याकुल रहते थे। तर्...
28/08/2023

*तर्क बुद्धि*
(((((())))))
एक ब़ह्म ज्ञानी, समग्र सत्य और पूर्ण ब्रह्म को जानने के लिए व्याकुल रहते थे। तर्क असख्यों उभरते,पर समाधान एक का भी न मिलता।
एक दिन वे सागर तट पर घूम रहे थे।देखा एक बच्चा हाथ में प्याली लिए निराश बैठा है।और उसे इधर-उधर उलटता-पुलटता है।
ब़ह्म ज्ञानी ने बच्चे से चिंता का कारण पूछा।बच्चे ने
सहज भाव से कहा---"इस प्याली में समुद्र भरना चाहता हूं, पर ऐसा हो नहीं पा रहा है।"
ब़ह्म ज्ञानी उसके भोलेपन पर हंस दिए।और बोले--"
बच्चे!यह प्रयत्न छोड़ दो,भला इतना बड़ा समुद्र इतनी छोटी प्याली में कैसे समा जायेगा।"
बालक ने हठ छोड़ दी और घर वापस चला गया,पर
ब़ह्म ज्ञानी को नया प्रकाश दे गया। भावना में बसने वाला, श्रद्धा से पलने वाला भगवान भला तर्क बुद्धि की प्याली में किस प्रकार समेटा और बिठाया जा सकेगा।
जय श्री कृष्ण।

एक सच्ची घटना राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र से ... एक गांव मे एक गोपाली बाई नाम की भक्ता थी । वह वर्ष में दो बार श्री वृंद...
25/08/2023

एक सच्ची घटना राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र से ...

एक गांव मे एक गोपाली बाई नाम की भक्ता थी । वह वर्ष में दो बार श्री वृंदावन में श्रीराधवल्लभ जी का दर्शन करने जाती । संतो के लिए भंडारा भी करती थी । उसकी श्री वृंदावन धाम और रज में बड़ी श्रद्धा थी । माता पिता की वह एक ही लड़की थी । बहुत प्रयास करने पर भी उसका विवाह नही हुआ।

बाद मे माता पिता वृद्ध हो गए, बीमार रहने लगे तो उनकी सेवा मे रहने के कारण धाम नही जा पाती थी । एक दिन उसके गुरुदेव वहां आये और उसको आज्ञा करी की तुम वृंदावन वास की ज़िद नही करना, श्री राधारानी ने जिस अवस्था मे रखा है उसमें सुख मानकर भजन करना, माता पिता को त्यागना नही । अपने मुख से सदा "राधावल्लभ श्री हरिवंश श्री वृंदावन श्री वनचंद्र" इस का कीर्तन करती रहती थी ।
कुछ वर्ष बाद माता पिता का शरीर शांत हुआ । अब वृंदावन जाने का सोचती तो स्वयं का शरीर भी कमजोर होने लगा था । आस पास के लोग उसको कभी रोटी दाल आदि दे जाते । एक दिन उसको लगा की अब मृत्यु निकट है, वह बहुत व्याकुल होकर तीव्र गति से भजन करने लगी । अब कैसे ब्रजरज पाऊँ? अब कैसे धाम का दर्शन पाऊँ?

रुदन करती हुई पुकारने लगी "राधावल्लभ श्री हरिवंश श्री वृंदावन श्री वनचंद्र"। उसी समय उसने देखा की वह जिस चारपाई पर पड़ी है, उसके बगल मे यमुना जी प्रकट हो गयी । सामने श्री गिरिराज जी प्रकट हो गए । वह अनुभव कर रही थी की यमुना जी के किनारे उसकी चारपाई पड़ी है । यमुना का दिव्य नील वर्ण है, अत्यंत स्वच्छ जल है और उनके भीतर अलौकिक स्वर्ण कांति के मत्स्य, कछुए है ।

गिरिराज जी स्वर्ण मयी दिखाई दिए । कुछ देर मे गायों के गले की घंटियों की आवाज आयी और श्री कृष्ण बलराम जी हजारों सुंदर गायों के साथ दिखाई दिए । गौ माताओं के चलने से जो ब्रजरज उड़ रही थी वह उसके अंगो का स्पर्श करने लगी । भगवान की गौ चारण लीला को देखते देखते दिव्य श्री वृंदावन धाम के मध्य मे उसने प्राण त्याग किया।

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