Dhannaram jaat

Dhannaram jaat


14/12/2023
17/06/2023

पिछले 30 दिनों में मुझे अपनी पोस्ट पर 100 रिएक्शन रिएक्शन मिले हैं. आपके सपोर्ट के लिए, आप सभी का धन्यवाद. 🙏🤗🎉

21/03/2023

#राजस्थान

⚡⚡🪑⚡⚡🟨 एक माँ थी उसका एक बेटा था। माँ-बेटे बड़े गरीब थे। एक दिन माँ ने बेटे से कहा - बेटा !! यहाँ से बहुत दूर तपोवन में ...
21/03/2023

⚡⚡🪑⚡⚡
🟨 एक माँ थी उसका एक बेटा था। माँ-बेटे बड़े गरीब थे। एक दिन माँ ने बेटे से कहा - बेटा !! यहाँ से बहुत दूर तपोवन में एक दिगम्बर मुनि पधारे हैं वे बड़े सिद्ध पुरुष हैं और महाज्ञानी हैं। तुम उनके पास जाओ और पूछो कि हमारे ये दु:ख के दिन और कब तक चलेंगे। इसका अंत कब होगा।

🟧बेटा घर से चला। पुराने समय की बात है, यातायात की सुविधा नहीं थी। वह पद यात्रा पर था। चलते-चलते सांझ हो गई। गाँव में किसी के घर रात्रि विश्राम करने रुक गया। सम्पन्न परिवार था। सुबह उठकर वह आगे की यात्रा पर चलने लगा तो घर की सेठानी ने पूछा - बेटा कहाँ जाते हो ? उसने अपनी यात्रा का कारण सेठानी को बताया। तो सेठानी ने कहा - बेटा एक बात मुनिराज से मेरी भी पूछ आना कि मेरी यह इकलौती बेटी है, वह बोलती नहीं है। गूंगी है। वह कब तक बोलेगी ? तथा इसका विवाह किससे होगा ? उसने कहा - ठीक है और वह आगे बढ़ गया।

🟦रास्ते में उसने एक और पड़ाव डाला। अबकी बार उसने एक संत की कुटिया में पड़ाव डाला था। विश्राम के पश्चात्‌ जब वह चलने लगा तो उस संत ने भी पूछा - कहाँ जा रहे हो ? उसने संत श्री को भी अपनी यात्रा का कारण बताया। संत ने कहा - बेटा! मेरी भी एक समस्या है, उसे भी पूछ लेना। मेरी समस्या यह है कि मुझे साधना करते हुए 50 साल हो गये। मगर मुझे अभी तक संतत्व का स्वाद नहीं आया। मुझे कब संतत्व का स्वाद आयेगा, मेरा कल्याण कब होगा। बस इतना सा पूछ लेना। युवक ने कहा - ठीक है। और संत को प्रणाम करके आगे चल पड़ा।

🟩 युवक ने एक पड़ाव और डाला। अबकी बार का पड़ाव एक किसान के खेत पर था। रात में चर्चा के दौरान किसान ने उससे कहा मेरे खेत के बीच में एक विशाल वृक्ष है। मैं बहुत परिश्रम और मेहनत करता हूँ, लेकिन उस बड़े वृक्ष के आस-पास दूसरे वृक्ष पनपते नहीं हैं। पता नहीं क्या कारण है। किसान ने युवक से कहा - मेरी भी इस समस्या का समाधान कर लेना। युवक ने स्वीकृति में सिर हिला दिया और सुबह आगे बढ़ गया।

🟦अगले दिन वह मुनिराज के चरणों में पहुँच गया। मुनिराज के दर्शन किये। दर्शन कर उसने अपने जीवन को धन्य माना। मुनिराज से प्रार्थना की कि प्रभु! मेरी कुछ समस्याएं हैं, जिनका मैं समाधान चाहता हूँ। आप आज्ञा दें तो श्री चरणों में निवेदन करूं। मुनि ने कहा - ठीक है !! मगर एक बात का विशेष ख्याल रखना कि *तीन प्रश्न से ज्यादा मत पूछना। मैं तुम्हारे किन्हीं भी तीन प्रश्नों का ही समाधान दूंगा। इससे ज्यादा का नहीं।*
🟨युवक तो बड़े धर्म-संकट में फंस गया। अब क्या करूं, प्रश्न तो चार हैं. तीन कैसे पूछूं। तीन प्रश्न दूसरों के हैं और एक प्रश्न मेरा खुद का है। अब किसका प्रश्न छोड़ दूं। क्या लड़की का प्रश्न छोड़ दूं ? नहीं, यह तो ठीक नहीं है, यह उसकी जिन्दगी का सवाल है। तो क्या महात्मा के प्रश्न को छोड़ दूं ? यह भी नहीं हो सकता। तो क्या किसान का प्रश्न छोड़ दूं ? नहीं, यह भी ठीक नहीं है। बेचारा खून-पसीना एक करता है, तब भी उसे कुछ भी नहीं मिलता है। *अंत में काफी उहापोह के बाद उसने तय किया कि वह खुद का प्रश्न नहीं पूछेगा। उसने अपना प्रश्न छोड़ दिया और शेष तीनों प्रश्नों का समाधान लिया और वापिस अपने घर की ओर चल दिया।*

🟦 रास्ते में सबसे पहले किसान से मुलाकात हुई। किसान से युवक ने कहा - मुनिराज ने कहा है - कि तुम्हारे खेत में जो विशाल वृक्ष है, उसके नीचे चारों तरफ सोने के कलश दबे हुए हैं। इसी कारण से तुम्हारी मेहनत सफल नहीं होती है। किसान ने वहाँ खोदा तो सचमुच सोने के कलश निकले। किसान ने कहा - बेटा यह धन-सम्पदा तेरे कारण से निकली है। इसलिए इसका मालिक भी तू है। और किसान ने वह सारा धन उस युवक को दे दिया। युवक आगे बढ़ा। अब संत के आश्रम आया। संत ने पूछा - मेरे प्रश्न का क्या समाधान बताया है। युवक ने कहा - स्वामी जी! माफ करना मुनिराज ने कहा है कि आपने अपनी जटाओं में कोई कीमती मणि छुपा रखी है। जब तक आप उस मणि का मोह नहीं छोड़ेंगे, तब तक आपका कल्याण नहीं होगा। साधु ने कहा - बेटा तू ठीक ही कहता है, सच में मैंने एक मणि अपनी जटाओं में छिपा रखी है, और मुझे हर वक्त इसके खो जाने का, चोरी हो जाने का भय बना रहता है। इसलिए मेरा ध्यान भजन-सुमिरण में भी नहीं लगता। ले अब इसे तू ही ले जा, और साधु ने वह मणि उस युवक को दे दी।

🟧 युवक दोनों चीजों को लेकर फिर आगे बढ़ा। अब वह सेठानी के घर पहुँचा। सेठानी दौड़ी-दौड़ी आई और पूछा - बेटा ! बोल क्‍या कहा है मुनिराज ने। युवक ने कहा कि माँ जी मुनिजी ने कहा है कि तुम्हारी बेटी जिसको देखकर ही बोल पड़ेगी, वही इसका पति होगा। अभी सेठानी और युवक की बात चल ही रही थी कि वह लड़की अन्दर से बाहर आई और उस युवक को देखते ही एकदम से बोल पड़ी। सेठानी ने कहा - बेटा आज से तू इसका पति हुआ। मुनिराज की वाणी सच हुई। और उसने अपनी बेटी का विवाह उस युवक से कर दिया।
🟨अब वह युवक धन,मणि और कन्या को साथ लेकर अपने घर पहुँचा। माँ ने पूछा - बेटा तू आ गया। क्या कहा है मुनिश्री ने। कब हमें इन दु:खों से मुक्ति मिलेगी। बेटा ने कहा - माँ मुक्ति मिलेगी नहीं, मुक्ति मिल गई। मुनिराज के दर्शन कर मैं धन्य हो गया। उनके तो दर्शन मात्र से ही जीवन के दु:ख, पीड़ाएं और दर्द खो जाते हैं। माँ ने पूछा - तो क्या मुनिराज ने हमारी समस्याओं का समाधान कर दिया है। बेटे ने कहा - हाँ माँ ! मैंने तो अपनी समस्‍या उनसे पूछी ही नहीं और समाधान भी हो गया। माँ ने पूछा वो कैसे ? बेटे ने कहा - *👉माँ मैंने सबकी समस्या को अपनी समस्या समझा तो मेरी समस्या का समाधान स्वत: हो गया। जब दूसरों की समस्या अपनी खुद की समस्या बनने लगती है तो फिर अपनी समस्या कोई समस्या ही नहीं रहती।*

*जो दूसरों के लिए सोचता है। ईश्वर स्वयं उसके लिए करतें है।*

*हम बदलेंगे,युग बदलेगा।*

*कर भला* *होगा भला*

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

20/03/2023

सब्र करो जिंदगी तुम्हें हर वो चीज़ देगी,
जिसके तुम लायक हो!!

03/03/2023

✴️हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया✴️

क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या क्या मांग रहे हैं?

बस रटा रटाया बोलते जाते हैं। आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो।

तो लीजिए पेश है श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित!!

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
📯《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।★
📯《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★
📯《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★
📯《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★
📯《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★
📯《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★
📯《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
📯《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥★
📯《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★
📯《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★
📯《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★
📯《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★
📯《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★
📯《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★
📯《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★
📯《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★
📯《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।★
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥★
📯《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★
📯《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।★
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★
📯《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★
📯《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥★
📯《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।★
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★
📯《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★
📯《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।★
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥★
📯《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥★
📯《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।★
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★
📯《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★
📯《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★
📯《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★
📯《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★
📯《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★
📯《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।★
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★
📯《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★
📯《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥★
📯《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।★
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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
📯《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।★
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★
📯《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★
📯《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★
📯《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

🌹सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित🌹
🍒💠🍒💠🍒💠🍒💠🍒
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
जय जय श्री राम🙏

जिस देश के अखबार के पहले पेज पर गुटखे का प्रचार हो उस देश की सड़कों पर थूक ही मिलेगा ।।
21/01/2023

जिस देश के अखबार के पहले पेज पर गुटखे का प्रचार हो उस देश की सड़कों पर थूक ही मिलेगा ।।

ठंड में इंतजार एक सवारी का था और मसला दो रोटी का....मौत ने दोनों सवाल ही ख़तम कर दिए 😭😢....!! दुखद ।।ॐ शान्ति।।पता नहीं ...
13/01/2023

ठंड में इंतजार एक सवारी का था और मसला दो रोटी का....
मौत ने दोनों सवाल ही ख़तम कर दिए 😭😢....!! दुखद ।।ॐ शान्ति।।
पता नहीं यह फोटो कहां की है, कब की हैं।

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी , पहला चरण   -   कैंची दूसरा चरण    -   डंडा तीसरा चरण   -   गद्दी ......
13/01/2023

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी ,
पहला चरण - कैंची
दूसरा चरण - डंडा
तीसरा चरण - गद्दी ...
*तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।*
*"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे*।
और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और *"क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है* ।
*आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था*।
हमने ना जाने कितने दफे अपने *घुटने और मुंह तोड़वाए है* और गज़ब की बात ये है कि *तब दर्द भी नही होता था,* गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।
अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और *अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में* ।
मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! *"जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं* ।
*इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए* !
और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।
और ये भी सच है की *हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी* ।
हम लोग की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !
*पहला चरण कैंची*
*दूसरा चरण डंडा*
*तीसरा चरण गद्दी।*
● *हम वो आखरी पीढ़ी हैं*, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।
● *हम वो आखरी लोग हैं*, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं l

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