03/01/2024
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*ज्ञान भंडार*
एक बहुत ज्ञानी व्यक्ति था। वो अपनी पीठ पर ज्ञान का भंडार लाद कर चला करता था। सारी दुनिया उसकी जयकार करती थी। ज्ञानी अपने ज्ञान पर दंभ करता इतराता फिरता था। एक बार वो किसी पहाड़ी से गुजर रहा था, रास्ते में उसे भूख लग आई। उसने इधर-उधर देखा, कुछ दूरी पर नयासर गांव दिखा वहां एक बुढ़िया इमरती देवी पत्थरों के पीछे अपने लिए रोटी पका रही थी। ज्ञानी व्यक्ति उसके पास पहुंचा और उसने उससे अनुरोध किया कि क्या वो उसे भी एक रोटी खिला सकती है?
बुढ़िया ने कहा, “ज़रूर।”
आदमी ने कहा कि लेकिन उसके पास देने को कुछ नहीं है, हां ज्ञान है और वो चाहे तो उसे थोड़ा ज्ञान वो दे सकता है। बुढ़िया ने कहा कि ठीक है। तुम रोटी खा लो और मुझे मेरे एक सवाल का जवाब दे दो।
आदमी ने रोटी खाने के बाद बुढ़िया से कहा कि पूछो अपना सवाल। बुढ़िया ने पूछा, “तुमने अभी-अभी जो रोटी खाई है, उसे तुमने अतीत के मन से खाई है, वर्तमान के मन से खाई है या फिर भविष्य के मन से खाई है?”
आदमी अटक गया। उसने अपनी पीठ से ज्ञान की बोरी उतारी और उसमें बुढ़िया के सवाल का जवाब तलाशने लगा। हज़ारों पन्ने पलटने के बाद भी उसे उसके सवाल का जवाब नहीं मिला।
बहुत देर हो चुकी थी। बुढ़िया को लौटना था। आखिर में उसने उस ज्ञानी से कहा कि "तुम रहने दो। इस सवाल का जवाब इतना भी कठिन नहीं था। ज़िंदगी में हर सवाल के जवाब कठिन नहीं होते। इसका तो बहुत सीधा सा जवाब था कि आदमी रोटी मुंह से खाता है, न कि अतीत, वर्तमान या भविष्य के मन से। वो तो तुम ज्ञानी थे, बड़े आदमी थे, तुमने अपने ज्ञान के बूते खुद को दुरूह बना लिया है, इसलिए हर सवाल के जवाब तुम पीठ पर लदे ज्ञान के बोझ में तलाशते हो, वर्ना ज़िंदगी को सहज रूप में जीने के लिए तो सहज ज्ञान की ही दरकार होती है।
सहजता से बढ़ कर जीवन को जीने का कोई दूसरा मूलमंत्र नहीं है। जो आदमी सहज होता है नवनीत, वो संतोषी होता है। जीवन के सफर को सुखमय बनाने का यह सबसे आसान फॉर्मूला है। जो चीज जैसी है, उसे उसी तरह स्वीकार करने की कोशिश करनी चाहिए।
*💐💐शिक्षा💐💐*
लोग भले कहें कि जो हम पाएंगे, वही देंगे लेकिन आप इसकी जगह यह सोचना कि जो आप दोगे, वही पाओगे। जीवन में हर सवाल का जवाब ज्ञान की पीठ पर सवार नही होता है।
*वास्तविक मूल्य*
बहुत समय पहले की बात है। उपरमालिया गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। उसके दो बेटे थे। बूढ़ा वस्तुओं के उपयोग के मामले में कंजूस था और उन्हें बचा-बचा कर उपयोग किया करता था।
उसके पास एक पुराना चांदी का पात्र था। वह उसकी सबसे मूल्यवान वस्तु थी। उसने उसे संभालकर संदूक में बंद कर रखता था। उसने सोच रखा था कि सही अवसर आने पर ही उसका उपयोग करेगा।
एक दिन उसके यहाँ एक संत आये। जब उन्हें भोजन परोसा जाने लगा, तो एक क्षण को बूढ़े व्यक्ति के मन में विचार आया कि क्यों न संत को चांदी के पात्र में भोजन परोसूं? किंतु अगले ही क्षण उसने सोचा कि मेरा चांदी का पात्र बहुत कीमती है। गाँव-गाँव भटकने वाले इस संत के लिए उसे क्या निकालना? जब कोई राजसी व्यक्ति मेरे घर पधारेगा, तब यह पात्र निकालूंगा। यह सोचकर उसने पात्र नहीं निकाला।
कुछ दिनों बाद उसके घर राजा का मंत्री भोजन करने आया। उस समय भी बूढ़े व्यक्ति ने सोचा कि चांदी का पात्र निकाल लूं। किंतु फिर उसे लगा कि ये तो राजा का मंत्री है। जब राजा स्वयं मेरे घर भोजन करने पधारेंगे, तब अपना कीमती पात्र निकालूंगा।
कुछ दिनों के बाद स्वयं राजा उसके घर भोजन के लिए पधारे। राजा उसी समय पड़ोसी राज्य से युद्ध हार गए थे और उनके राज्य के कुछ हिस्से पर पड़ोसी राजा ने कब्जा कर लिया था। भोजन परोसते समय बूढ़े व्यक्ति ने सोचा कि अभी-अभी हुई पराजय से राजा का गौरव कम हो गया है। मेरे पात्र में किसी गौरवशाली व्यक्ति को ही भोजन करना चाहिए। इसलिए उसने चांदी का पात्र नहीं निकाला।
इस तरह उसका पात्र बिना उपयोग के पड़ा रहा। एक दिन बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो गई।
उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे ने उसका संदूक खोला। उसमें उसे काला पड़ चुका चांदी का पात्र मिला। उसने वह पात्र अपनी पत्नी को दिखाया और पूछा, “इसका क्या करें?”
पत्नी ने काले पड़ चुके पात्र को देखा और मुँह बनाते हुए बोली, “अरे इसका क्या करना है। कितना गंदा पात्र है। इसे कुत्ते को भोजन देने के लिए निकाल लो।”
उस दिन के बाद से घर का पालतू कुत्ता उस चांदी के पात्र में भोजन करने लगा। जिस पात्र को बूढ़े व्यक्ति ने जीवन भर किसी विशेष व्यक्ति के लिए संभालकर रखा, अंततः उसकी ये गत हुई।
*💐💐शिक्षा💐💐*
किसी वस्तु का मूल्य तभी है, जब वह उपयोग में लाई जा सके। बिना उपयोग के बेकार पड़ी कीमती वस्तुओं का भी कोई मूल्य नहीं। इसलिए यदि आपके पास कोई वस्तु है, तो यथा समय उसका उपयोग कर लें।