Culture and Education

Culture and Education जय माता भंगायनी देवी
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Information

Haripurdhar (Longitude 77.52 and latitude 30.76 ) is a small town in Sirmour, Himachal Pradesh, India. The town is situated on a high ridge overlooking a deep valley at an altitude of 2500 metres above sea level. It was earlier known as 'Dungbhangayani' and was the summer capital of Sirmour. In winters there

is a view of snowfall. The town has many hotels and a guest house. A temple is situated on the border of Shimla and Sirmour. There are around many rooms with basic facilities in the temple premises MAA BHANGYANI TEMPLE. The place is full of scenic beauty and greenery. There are many old temples of many deities in the adjoining villages. History of Haripurdhar

Haripurdhar was earlier known as ‘Dungbhangayani’. It was formerly the summer capital of the Sirmour. Situated on a crest of Haripur hill like a silent sentinel, there is a fort named “Killa” that was built on this mountain range by the rulers of incipient Sirmour State. It was mainly meant to guard the state outskirts with the neighboring Jubbal state as there were regular boundary disputes between the two states and there was unusual push into each other's territory. It has fallen into abandonment and the part which is still livable is used by the Forest Department as the forester's headquarters. Maa Bhangayani Temple Haripurdhar in Sirmour: हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। यहां हर गांव में देवता विराजमान हैं। देव शक्ति पर लोगों का अटूट विश्वास व श्रद्धा है। शिव शक्ति के अलावा ब्रह्मा, विष्णु, नाग, सिद्ध और पीर पैगम्बरों की पूजा पुरातन काल से होती आ रही है। अपने परिवार, पशुधन, कृषि, वनस्पतियों आदि के रक्षार्थ यहां अनेक ग्राम्य देवी-देवताओं को मानने व विधि-विधान से उनकी पूजा करने का रिवाज है। जहां तक भी नजर दौड़ाएं इस सुरम्य प्रदेश की छोटी-छोटी चोटियों से लेकर दुर्गम पर्वतों पर आस्था के प्रकाश पुंज देवी-देवताओं के असंख्य मंदिर नजर आते हैं।
जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन से लगभग 100 किलोमीटर दूर हरिपुरधार नामक एक छोटा कस्बा है जहां रियासत काल में सिरमौर रियासत के महाराज हरि प्रकाश द्वारा हरिपुर किला का निर्माण करवाया गया था। कस्बे से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर दुख हरने वाली देवी मां भंगायणी साक्षात रूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि इस शक्ति स्वरूपा देवी का मात्र नाम लेने पर ही यह मनोवांछित फल देते हैं और भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करती हैं। सद् और असद का तत्काल निर्णय करने के कारण इसे न्याय की देवी के नाम से भी जाना जाता है। इसके चरणों में बसा हुआ बियांग गांव हैं जोकि पूरा गांव पंडितो का ही हैं और उनमें बदराइक खानदानी के पंडित माता के कुल पंडित हैं। बदराइक में भी ज़माण परिवार सबसे पुराना हैं। माना जाता हैं कि इनके परिवार का कोई भी सदस्य अगर किसी भक्त की भेंट माता के चरणों में अर्पित करता हैं तो उसकी मनोकामना पूरी हो जाती हैं।

जनश्रुति यह भी है कि माता हमेशा सत्य का साथ देती हैं तथा असत्य व दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति को बहुत कठोर दंड देती हैं इसलिए इस देवी की न्यायप्रियता से सभी लोग खौफ खाते हैं तथा भूल कर भी इसके पास झूठी गुहार लगाने से डरते हैं।


विवाद में ली जाती है माता की सहायता
समुद्र तल से लगभग 8000 फुट ऊंची चोटी पर स्थित होने के कारण इसे धारों वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। सर्दियों में यहां पर खूब बर्फ पड़ती है। सिरमौर, सोलन व शिमला जिलों में देवी की बहुत अधिक मान्यता है। भूमि, विवाद, आपसी द्वेष व झगड़ों के निपटारे में इस देवी की सहायता ली जाती है। अपार शक्ति तथा तत्काल दंड देने के कारण माता की दूर-दूर तक मान्यता है।

माता की उत्पति संबंधित इतिहास :-

प्रचलित जनश्रुति में
देवी के यहां प्रकट होने के बारे में भी कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। कथानुसार एक बार शिरगुल देवता अन्य देवताओं तथा दल-बल सहित दिल्ली दौरे पर गए थे। वहां पर एक दुकान पर कुछ बर्तन आदि खरीदने लगे। दुकानदार द्वारा दुकान का पूरा सामान तराजू में डालने पर भी बाट वाला पलड़ा एक ओर ही झुका रहा। इस पर उसे शिरगुल देवता पर किसी चमत्कारी शक्ति होने का संदेह हुआ। कहते हैं कि दुकानदार जब शिरगुल देवता से विवाद करने लगा तो दुकान में रखे बर्तन स्वयं ही सड़कों पर लुढ़कने लगे।


उस समय दिल्ली पर मुग़ल का शासन था जो नहीं चाहते थे कि शक्ति में कोई उनसे अधिक बलशाली व श्रेष्ठ हो। दुकानदार ने तुर्क शासक के समक्ष सारी बातें स्पष्ट की और न्याय की गुहार लगाई। तुर्क शासक ने शिरगुल देवता को अपने पास बुलाकर पकड़ना चाहा तो वह वहां भी चमत्कार दिखाने लगे और अपनी शक्ति से सेना को परास्त कर दिया। इन दिव्य शक्तियों के प्रदर्शन से तुर्क शासक भयभीत हो गए।

जब वे देवता को बंदी बनाने में असफल रहे तो धोखे से उन्हें चमड़े की बेड़ियों में जकड़कर जेल में डाल दिया गया। शिरगुल देवता की सहायतार्थ आए बागड़ देश के महाराज गूगा जाहर पीर ने वहां भंगिन के रूप में कार्यरत माता भंगायणी की मदद से शिरगुल देवता को मुक्त कराया। कारागार से मुक्त होने पर शिरगुल देवता माता भंगायणी को अपने साथ ले आए और उन्हें हरिपुरधार की चोटी पर निवास होने के लिए कहा और स्वयं चूड़धार पर लीन हो गए।

जनश्रुति है कि आस-पास के गांव के ग्वालों को चोटी पर एक पत्थर दिखा जो एक ओर से नुकीला था। उस पत्थर को जमीन पर गाड़ कर वे खेलने लगे। ग्वाले जितना उस पत्थर को जमीन में गाड़ते कुछ देर बाद वह पत्थर जमीन से बाहर निकल जाता। एक दिन ग्वालों ने इसे पहाड़ी के नीचे गिरा दिया लेकिन दूसरे दिन वह पत्थर पुन: उसी पहाड़ी पर अपने स्थान पर मिला तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। गांव वालों ने एक पुरोहित का सहारा लिया। उन्होंने यहां पर शक्ति होने के बारे में बताया और गांव वालों को यहां मंदिर का निर्माण करने को कहा।

गांव वालों ने चोटी पर मंदिर की स्थापना की तथा इस मंदिर में पत्थर को पिंडी के रूप में स्थापित किया। अपार शक्ति की स्वामिनी होने के कारण इस पिंडी के साक्षात दर्शन करना वर्जित माना जाता है तथा यह देवी माता के चरणों के नीचे ढक कर रखी गई है। तभी से मां यहां शक्ति रूप में अपने भक्तों की रक्षार्थ सदैव उपस्थित रहती हैं।

माता भंगायणी को शिरगुल देवता की धर्म बहन के रूप में भी माना जाता है। किसी कारणवश यदि देवी माता कुपित हो जाएं तो उन्हें मनाने तथा दोष निवारण के लिए तत्काल शिरगुल देवता की शरण लेनी पड़ती है। माता भंगायणी की तलहटी पर माता बिजाई तथा माता गुडय़ाली जो शिरगुल देवता की वीरगाथाओं में आता है, के पहाड़ी शैली में बने अत्यंत आकर्षक मंदिर शोभायमान हैं। यहां तक पहुंचने का मार्ग पैदल है।
सुंदर पहाड़ियों तथा घने मनोहारी जंगल से घिरा
देश के विभिन्न भागों से श्रद्धालु आश्विन में पढ़ने वाले नवरात्रों तथा संक्रांति के दिन यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नाहन-हरिपुरधार मार्ग तथा सोलन हरिपुरधार मार्ग के चारों ओर बान, देवदार व बुरांस के हरे-भरे घने जंगल मनोहारी छटा बिखेरते हैं। गर्मियों के मौसम में लाल बुरांस के फूलों से लदे वृक्षों का विहंगम दृश्य अनूठे आनंद की अनुभूति देता है। कभी-कभार यात्रा करते हुए घने जंगलों में रहने वाले दुर्लभ वन्य प्राणियों की उपस्थिति यात्रा को आनंदमय बना देती है।

पूर्व दिशा में चूड़धार की ऊंची हिमाच्छादित चोटियां दूर-दूर तक लम्बे पसरे घने जंगल, जगह-जगह पर कल-कल बहते धवल झरने स्वर्गानुभूति प्रदान करती है।

कैसे पहुंचें
यहां पहुंचने के लिए चारों ओर से मार्ग हैं। नाहन से हरिपुरधार के लिए नाहन-रेणुका-संगड़ाह तथा पौंटा साहिब-रेणुका-संगडाह की ओर से पक्की सड़कें हैं वहीं शिमला-चौपाल-कुपवी मार्ग से भी हरिपुरधार तक पहुंचा जा सकता है। चंडीगढ़ की ओर से आने वाले श्रद्धालु सोलन राजगढ़ नौहराधार मार्ग से इस मंदिर तक पहुंच कर माता के आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

मन्दिर में ही रात को रुकते हैं पर्यटक

हरिपुरधार में आने वाले अधिकतर पर्यटक मन्दिर में ही रात्रि विश्राम के लिए रुकते हैं। मन्दिर समिति द्वारा यहाँ 60 कमरों के यात्री निवास सहित हाल, स्नानागार इत्यादि की सुन्दर व्यवस्था है। समिति द्वारा यात्रियों को लंगर के माध्यम से भोजन, चाय भी उपलब्ध करवाया जाता है। मन्दिर के नीचे कुछ ढाबे भी हैं, जहाँ जलपान, भोजन मिल जाता है। हरिपुरधार में भी कुछ एक रेस्ट हाउस हैं। इनमें भी लोग रात्रि को रुकते हैं। परिवार सहित एक या दो दिन के लिए यहाँ आकर प्रकृति का सानिध्य प्राप्त किया जा सकता है।



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2. माता का दिल बहुत ही दिलेर हैं और माता अन्ने भला हो हर मनोकामना को पुआ करती हैं।
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Haripurdhar, Nahan Distt Sirmour
Shimla
173032

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